किसके-किसके नाम
याद करूँ?
किसके-किसके
भूलूँ?
क्या मैं ही हूँ
एक निरा बावरा
जो बे-सर-पैर
की सोचूँ?
कभी किसी ने
कुछ कह दिया
कभी किसी ने
कुछ कहा नहीं
किसकी बात
ज़हन में रखूँ?
किसकी चुप्पी
को कोसूँ?
है दिमाग़
तो फिर आग भी है
मै जला
उसकी राख भी है
चिंगारी तो
बुझी नहीं
पल-पल
राख कुरेदूँ
हर जगह
हर कोई हिदायत देता
बन चुके सब
सदर-सरगना-नेता
किसकी बात को
पल्लू में बाँधूँ?
किसकी बात
को छोड़ूँ?
तर्क-वितर्क की
बात नहीं है
सही-ग़लत का भी
हिसाब नहीं है
किसके आगे
सर झुकाऊँ?
और किसके हाथ
मैं जोड़ूँ?
पग-पग पे
कोहराम बहुत है
गिनने लगो तो
संताप बहुत हैं
किसको अपने
हाल पे छोड़ूँ?
किसको अंक में
भर लूँ?
13 अगस्त 2016
सिएटल । 425-445-0827
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