महकें फूल तो महकती फ़िज़ा भी है
दहकें बदन तो सुलगती निशा भी है
हर तरफ़, हर जगह, है इश्क़ की बू
है ख़ुशी भी मगर कुछ गिला भी है
ऐसा नहीं कि मैंने इश्क़ किया नहीं
कभी किसी को ख़त लिखा भी है
सब के सामने, सब कुछ कैसे कह दूँ?
तन्हाई में ख़ुद से वार्तालाप किया भी है
मान्यताएँ बदलें, या न बदलें
यदाकदा ईश्वर का नाम लिया भी है
17 अगस्त 2016
सिएटल | 425-445-0827
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