बदनाम है मौसम कि बदलता है वो
बदलने को तो बदलती हवा भी है
पतंगा ही नहीं फड़फड़ाता है पर अकेला
लिपटने को मचलती शमा भी है
काश! हम भी किसी की बाँहों में होते
ये कैसी आज़ादी कि लगती सज़ा भी है
सुमिरन करूँ कि दु:ख में हूँ मैं
इसीलिए कहते हैं दर्द दवा भी है
हमने तो जीवन का मतलब ये जाना
इक दीपक बुझा तो इक जला भी है
18 अगस्त 2016
सिएटल | 425-445-0827
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