प्रिय-मिलन
इक सपना है
जानता हूँ
फिर भी जगना है
इक मोमबत्ती ख़त्म होने तक ख़त लिखे
दूसरी ख़त्म होने तक ख़त पढ़े
फिर भी लौ जलती रही
मन मंदिर में तुम कुछ ऐसे गड़े
नित देखा
नित आस रही
मन में
मन की बात रही
'गर कह डाली
ख़त्म हो जाऊँगा
सदा-सदा के लिए
सो जाऊँगा
यह सम्बन्ध ही
कुछ ऐसा होता है
हर मोड़ पे
अंदेशा होता है
कि खो न दूँ
जिसे पा न सका
और रह जाऊँ
बस उसे मान सखा
इक मोमबत्ती बुझने तक छंद लिखे
दूसरी बुझने तक छंद पढ़े
इस जलने-बुझने में रात कटी
और प्रणय-पहेली अनबूझ रही
प्रिय-मिलन
इक सपना है
जानता हूँ
फिर भी जगना है
7 सितम्बर 2016
सिएटल | 425-445-0827
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