हर विषय पर मत होना ज़रूरी नहीं
हर प्रश्न का उत्तर हो यह ज़रूरी नहीं
कभी बौखला जाओ तो बौखला जाओ
हर बात पे हाज़िर-जवाबी ज़रूरी नहीं
कभी गिर जाओ और उठ न पाओ और
कोई और उठा दे तो कुछ ग़लत भी नहीं
हों करने को कई सारे काम पड़े और
दो-चार छूट भी जाए तो कुछ ग़लत भी नहीं
ये कविता है या बे-सर-पैर की बातें
मैं सोचूँ इतना मेरी फ़ितरत ही नहीं
राहुल उपाध्याय । 11 अगस्त 2024 । साल्ज़बर्ग (ऑस्ट्रिया)
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