जलेबी हो और मीठी न हो
हलवा हो और घी न हो
ऐसी ज़िंदगी किस काम की
जिस ज़िन्दगी में तुम ही न हो
हम लड़ें, मरें, कुछ भी करें
पर रहें दूर यह कभी न हो
सदाचार, नवाचार सब बेकार हैं
इश्क़ हो तो हैवानगी न हो
ताज है पर ताज़गी नहीं
कब तक तके?
जिसकी सूरत बदलती न हो
न मेरी गलती है
न तुम्हारी
गलेगी कैसे जब सीटी न हो
राहुल उपाध्याय । 24 अगस्त 2024 । होल्ट (जर्मनी)
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