अगर वो कहे, हम ग़मों को भुला दें
जिधर वो कहे, ज़िन्दगानी घुमा दें
ये जलवे मोहब्बत के हमें रास आए
जो बचते हैं उल्फ़त से वजह तो बता दें
जो पर्दानशीं है, है मज़ा ज़िन्दगी का
जो दिखता है हर रोज़, उसे क्यूँ हवा दें
हाथों से जिसकी ज़ुल्फ़ छेड़ी हमने
उसे आज कैसे ग़ज़ल से हटा दें
ये दुनिया नहीं वो जिसे हमने पूजा
मिले फिर अगर वो, दिया हम जला दें
राहुल उपाध्याय । 17 अगस्त 2024 । ऐम्स्टरडम
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