हम सुबह शाम भगवान को सजा देते हैं
न जाने किस भूल की उसे सज़ा देते हैं
ईश्वर जो कि अजर अमर है
उसे पत्थर में पनाह देते हैं
सब अपनी मनमानी मूरत गढ़ते हैं
उसने हमें बनाया, हम उसे बना देते हैं
फ़ुरसत नहीं हैं जिन्हें मिनटों की
मन्दिरों में घण्टे लगा देते हैं
मना के मनगढ़ंत जन्मदिन और तीज त्योहार
बात-बात पर हम अपना हक़ जता देते हैं
राहुल उपाध्याय । 2001 । सेन फ़्रांसिस्को
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