पिछले दिनों जब मैं दिल्ली में था तब घर पर अखंड रामचरितमानस का पाठ था। आमंत्रित तो कई थे पर चूंकि अष्टमी-नवमी बुध-गुरु की थी तो काम से अवकाश न मिलने पर सबका सहयोग नहीं मिल पाया। परिणाम ये हुआ कि अधिकांश पाठ मैंने किया। उत्तर कांड खत्म करते करते, चौपाईयों की लय दिमाग में बस गई। जो दूसरे दिन गोवर्धन परिक्रमा के दौरान भी साथ में रही और दिमाग में कुछ चौपाईया बन गई - जिन्हे मैं यहां प्रस्तुत कर रहा हूं। और पाठ की तरह मैंने इनमें दोहा और सम्पूट भी जोड़ दिए हैं।
[पाठ के दौरान ये सम्पूट लगाया गया था -
सियावर राम, जय जय राम,
मेरे मन बसियो सीताराम]
कैसी तरक्की इंसान ने पाई। दो कदम आगे तो पीछे अढ़ाई।
जुटाए सुविधा के साधन बहुतेरे। ताकि हाथ-पाँव न दुखे बहू तेरे।
घर सारा इन से भर जाए। समय सारा इनमें कट जाए।
दोहा - ये तेरे चाकर नहीं, तू इनकी है दास [रामा, तू इनकी है दास]
दिन रात आगे पीछे इनके समय बिताय। (1)
सम्पूट - सदा किया बस काम काम काम
नहीं लिए ईश्वर के दो नाम।
जब संकट में घिर जाए। आत्मविश्वास इतना गिर जाए।
हाथ जोड़े और हाथ फ़ैलाए। पांव छूए और सर झुकाए।
हर किसी को माई-बाप बनाए। रो-रो के दु:ख-शोक मनाए।
दोहा - इधर-उधर घुमत, घुमत घुमत थक जाए [रामा, घुमत घुमत थक जाए]
हाय नौकरी, हाय पैसा, रटत-रटत मर जाए। (2)
सम्पूट - सदा किया बस काम काम काम
नहीं लिए ईश्वर के दो नाम।
महानगर के हाल बेहाल हैं। महानगर की चाल बेढाल है।
जैसे जैसे आबादी बढ़े है। वैसे वैसे बर्बादी बढ़े है।
पेड़ पौधे सब काट गिराए। काट-कूट के फ़्लैट बनाए।
गोदामों में फल पकाए। गमलों में फूल लगाए।
सारा दिन दफ़्तर में काटे। सांझ सवेरे सड़क पर काटे।
दोहा - रात-बेरात खाए-पीए, हो जाए बीमार [रामा, हो जाए बीमार]
इस तरह काटे जीवन, काट काट पछताय (3)
सम्पूट - सदा किया बस काम काम काम
नहीं लिए ईश्वर के दो नाम।
दिल्ली,
19 जनवरी 2008
Saturday, February 2, 2008
चौपाईया
Posted by Rahul Upadhyaya at 11:27 PM
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Labels: worship
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1 comments:
यह चौपाईयों आज की situation के बारे मैं ठीक बात कहती हैं ।
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