Monday, June 23, 2008

सोना

"Did you sleep with her?"
"देखो, जैसा तुम सोच रही हो वैसा कुछ भी नहीं है।"
"Just say, Yes or No."
"हाँ।"

जी हाँ, यह वार्तालाप हो रहा है मेरी कान्वेंट पढ़ी-लिखी पत्नी का मेरे साथ। अक्सर यहीं देखा गया है कि कान्वेंट पढ़ी-लिखी कन्या यह देखकर शादी कर लेती है कि बंदा इंजीनियर है तो अंग्रेज़ी तो आती ही होगी। बाद में सर धुनती है कि बंदा तो हिंदी ऐसे बोलता है जैसे कि यू-पी का नेता। और रफ़ी-किशोर के रोते-धोते गाने सुनता है। और तो और, शेरो-शायरी की भी बीमारी लग जाती है।

जी हाँ, मैं कविता के साथ सो गया था। आप कहेगे कि ये तो बहुत पुराना पी-जे हैं। कोई नई बात करिएँ। कविता सुनते-सुनते या पढ़ते-पढ़ते हज़ारों आदमी रोज सोते हैं।

आप सही कह रहे हैं। मैं तो मंच पर भी अपने यार-दोस्तों की कविताए सुनते-सुनते उंघने लगता हूँ। बहुत बुरा लगता है और बाद में कवि दोस्त आड़े हाथ भी लेते हैं। अगली बार हम आपको साथ में ले कर नहीं आ रहे हैं। श्रोता तो सो सकता है, लेकिन मंच पर बैठने के भी अपने तौर-तरीके होते हैं। थोड़ी-थोड़ी देर में 'वाह', 'क्या बात है', 'अत्यंत अद्भुत', 'बहुत दर्द है', 'एक बार फिर से कहे', ये सब कहते रहना चाहिए। ताकि श्रोता को लगे कि वाकई बहुत अच्छी रचना थी, लेकिन हमें ही समझ नहीं आई। साथ ही लोगों का ये भी लगता है कि आपका कितना बड़ा दिल है कि दूसरों की रचनाएँ भी आपको अच्छी लगती है।

मैं नौसिखिया हूँ इस मामले में, फिर भी कोशिश करता हूँ कि कुछ नए वाह-वाही के जुमले याद कर के जाऊँ और थोड़ा सभ्य नज़र आउ। मगर आप ही बताए कि वही कविता आप कितनी बार सुन सकते हैं? कितनी बार उस पर ठहाका लगा सकते हैं? कितनी बार कह सकते हैं कि 'एक बार फिर से कहे।' लिहाजा, आँख लग ही जाती है।

जी हाँ, मैं सोया तो कविता के साथ ही था, लेकिन ये वो कविता नहीं है जिसके बारे में आप सोच रहे हैं। इस कविता का पूरा नाम है - कविता शर्मा। इतनी सुंदर कि मानो ऐश्वर्य राय बच्चन साक्षात। और ये रही होगी कोई 25-30 वर्ष की युवती। सही उम्र तो आप किसी की नहीं बता सकते। यहाँ तक की आप को अपनी पत्नी की जन्मतिथि भी ठीक से ज्ञात नहीं होती हैं। ध्यान दीजिएगा, मैं जन्मदिन याद रखने की बात नहीं कर रहा हूँ। याद तो तब रखा जाए, जब कोई आपको धोखे में न रखे और तिथि सही-सही बताए। जबकि शादी के वक़्त यह तिथि बहुत माइने रखती है। यहाँ तक कि घंटा-मिनट-स्थान तक ठीक तरह से दर्ज होना चाहिए, ताकि आपकी जन्मपत्री मिलाई जा सके। कितने गुण मिलते हैं? लड़का-लड़की मांगलिक है? आदि-आदि का निवारण तभी हो सकता है। लेकिन, शादी के कुछ वर्ष बाद पता चलता है कि 'एक्चुअली हुआ क्या था कि एडमिशन के वक़्त यह सोच कर कि आई-ए-एस के एक्ज़ाम के लिए एक और चांस मिल जाएगा, इसलिए उम्र कम बता दी थी।' साल ही नहीं, महीना भी बदल दिया था।

शादी के लिए जन्मपत्री तो सही समय वाली से ही बनवाई जाती होगी। लेकिन, अमेरिका में ग्रीन-कार्ड के वक़्त, डंके की चोट पर बक़ायदा स्टेम्प-पेपर पर सील के साथ दस्तखत कर दिए जाते हैं कि गलत जन्मतिथि ही सही जन्मतिथि है। कायदे-कानून-नियम बनाने वाले भी न जाने क्या सोचकर ऐसे कायदे-कानून बनाते हैं। उन्हें समझाने जाओ तो समझते ही नहीं। सो, हर कोई किसी न किसी तरह अपना ही अनूठा हल निकाल ही लेता है। सत्यमेव जयते।

अब इन कविता शर्मा की सिर्फ़ उम्र ही नहीं, मैं इनके बाकी हर परिचय से भी अपरिचित हूँ। यानि कि, क्या ये विवाहित है? बाल-बच्चे हैं? पति जीवित हैं? कहाँ रहती हैं? क्या काम करती हैं? आदि-आदि।

अब आप भी मुझ पर शक कर रहे हैं। कि न जान न पहचान और साथ में सो लिए। देखिए, मुझमें और आप में ज्यादा फ़र्क़ नहीं है। सोना सबको अच्छा लगता है। थके-हारे को भी। बच्चे को भी, बूढ़े को भी। और औरतों को तो दोनो अच्छे लगते हैं - बिस्तर पर सोना और अंग-अंग पर सोना।

कविता शर्मा और मैं भी कोई अलग तो हैं नहीं। उसे भी सोना था और मुझे भी सोना था। सो हम दोनों सो गए। पहले हम दोनो ने एक फ़िल्म देखी। फिर हम ने साथ साथ खाना खाया। फिर थोड़ी देर इधर-उधर की बाते की, जिनका न कोई सर था न पैर। थोड़ी देर क्रासवर्ड किया, कॉफ़ी पी, और फिर सुडोकू भी किया। थोड़ी देर बाद हम दोनो सो गए।

अब सोने में क्या बुराई है? फ़िल्म देखने में क्या बुराई है? साथ खाना खाने में क्या बुराई है? क्रासवर्ड, सुडोकू में क्या बुराई है?

इन सब को आमतौर पर समाज में बुरी निगाहों से नहीं देखा जाता है। लेकिन एक अकेला आदमी, एक अकेली औरत को अपने साथ फिल्म दिखाने नहीं ले जा सकता। जब तक कि उनके वैध या अवैध सम्बंध ने हो। या फिर सम्बंध स्थापित होने वाले हो। जैसे कि उनकी शादी की बात चल रही हो तो ये सुझाव दिया जाता है कि तुम दोनो कोई फ़िल्म देख कर आओ। एक दूसरे को जान लो ठीक तरह से। मेरे हिसाब से किसी को इस विषय पर एक किताब लिखनी चाहिए। ताकि बिचारा लड़का यह तय कर सके कि कौन सी फ़िल्म दिखाई जाए - संजय भंसाली की? या करण जौहर की? राजश्री की या यश चोपड़ा की? शाह रुख खान की या सलमान खान की? संजय दत्त की या आमिर खान की?

टिकट तो ज़ाहिर है, सब से महंगी श्रेणी के ही लिए जाएगे। लेकिन फ़िल्म के दौरान कैसे पेश आया जाए? बिलकुल शांत या ठहाके लगाते हुए? ईंटरवल में क्या खिलाया-पिलाया जाए? ठंडा या कॉफ़ी? समोसा या आईस-क्रीम? फ़िल्म के बाद फ़िल्म पर कोई टिप्पणी की जाए या फिर चांद सितारों की बातें की जाए।

एक किताब आवश्यक है। खैर, किताब को छोड़े। हम बात कर रहे थे कविता की। कविता शर्मा की। और उनके साथ सोने की। जैसा कि मैंने कहा, साथ साथ फ़िल्म देखना, साथ-साथ खाना खाना, साथ-साथ क्रासवर्ड करना, साथ-साथ सुडोकू करना, साथ-साथ रात को कॉफ़ी पीना, सब के सब एक असम्बंधित आदमी और औरत के बीच वर्जित हैं। लेकिन कोई पत्नी ये नहीं पूछती हैं कि
Did you eat with her?
Did you do crossword with her?
Did you go to movies with her?
Did you joke with her?

जी नहीं। हर पत्नी का चिर-परिचित प्रश्न है -
"Did you sleep with her?"

और इस सवाल का प्राय: जवाब यही होता है
"देखो, जैसा तुम सोच रही हो वैसा कुछ भी नहीं है।"

और फिर
"Just say, Yes or No."

तो मैंने सच सच कह दिया, "हाँ।"

अब हर एक की किस्मत तो मेरे जैसी होती नहीं हैं। 100 में से 99 वें पति इस वक़्त अपना गाल आगे कर देते हैं और पत्नी एक जोर का थप्पड़ रसीद कर देती हैं। लेकिन मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ।

मेरी ऐसी खुशकिस्मती कहाँ? कविता शर्मा और मैं रात भर साथ थे लेकिन हमारे बीच कम्बख्त 747 का एक आर्मरेस्ट था।

सिएटल,
24 जून 2008

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2 comments:

अनूप भार्गव said...

हा ! हा ! हा !
ये सोना भी कोई सोना हुआ बबुआ ....

वैसे बढिया लिखा है । निर्मल आनन्द ....

शोभा said...

राहुल जी
आपके अनुभव को पढ़ना अच्छा लगा।