इतने भावुक ना बनो, हाय, इतने भावुक ना बनो
हद के अन्दर हो भावना तो बजा होती है
हद से बढ़ जाये तो आप अपनी सज़ा होती है
रोज़मर्रा के मसले ही नहीं सुलझते तुमसे
सारे इतिहास का बदला भला लोगे कैसे?
बात अगर आज की हो तो समझ आए भी
गुज़रे कल को क्यूँ तुम आज लाओ फिर से?
ये न समझो कि हर एक बात पे हैं वे दोषी
हर एक पहलू को तुम बराबर देखो
ये जो तुम आज हरिश्चंद्र बने फिरते हो
अपने दामन में भी ज़रा झांक कर देखो
ये जो दुनिया है ये दुनिया सभी का घर है
ये है तेरा, ये है मेरा, ये करना क्यूँ है?
तुम भी चैन से बैठो, वे भी आराम करें
जो हो ही गया, हो ही गया, उसे कुरेदना क्यूँ है?
राहुल उपाध्याय । 15 मार्च 2022 । सिएटल
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