अपनी-अपनी राह सबने चुनी
फिर दोष किसे है क्या देना
ले मान इसे तू आज अगर
फिर दोष किसी को क्या देना
मँझधार में है जो कश्ती
खेनी वो तुझे ही होगी
'गर छाँव का है मंज़र तो
बन धूप, तू है ज्योति
हर राह है तेरे पथ में पथिक
फिर दोष किसे है क्या देना
ये नैन भरे हैं क्यों जल से
अधरों पे उदासी क्यूँ है
जो पाया वही क्या कम है
सूरत ये रुआँसी क्यूँ है
जो पाया उसे न समझ सके,
फिर दोष किसे है क्या देना
माना कि छलकते पैमाने
टूटे हैं तेरे हाथों से
माना कि मचलते दामन भी
छूटे हैं तेरे हाथों से
जो खोया कभी न तेरा था
फिर दोष किसे है क्या देना
राहुल उपाध्याय । 22 मार्च 2022 । सिएटल
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