फिर न रोओगे कभी इस बात का वादा कर लो
जो भी ग़म हैं उन्हें आज आधा कर लो
दिल की महफ़िल में हर एक ही तन्हा है यहाँ
ज़िन्दगी एक सफ़र जिसकी मंज़िल है कहाँ
यदि तुम भूल गए हो याद ताज़ा कर लो
हद से बढ़ जाए ज़हर, इल्म कहाँ होता है
अपना खुद का हो, वो जुर्म कहाँ होता है
अपनी आँखें हैं, सर आँखें हैं ज़माने के लिए
इन्हें अपना ही इल्म कहाँ होता है
आज से हर जज़्बात से किनारा कर लो
राहुल उपाध्याय । 18 मार्च 2022 । पोर्टलैंड
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