तेरी हिम्मत न टूटे कभी
युद्ध चाहे हो हर दो घड़ी
लम्बी-लम्बी उमरिया को छोड़ो
जो इज़्ज़त से जी वो बड़ी
उन साँसों का चलना भी क्या
जिन साँसों में गर्माई नहीं
वो कहानी कहानी नहीं
जिस कहानी में लड़ाई नहीं
लड़ते रहना ही है ज़िन्दगी
अपना-अपना है सबका चलन
तेरी सोच भी बुरी तो नहीं
अच्छा-बुरा है कौन जाने कौन
इसे नापे वो छड़ी तो नहीं
इसकी-उसकी है किसको पड़ी
जब तलक हैं जहां में सितम
तब तलक न हो लड़ाई खतम
अब जान जाए तो जाए भला
किसके रोके रूकी ये सनम
सिर झुके ना वही है खुशी
(संतोष आनन्द जी को उनके जन्मदिन पर समर्पित)
राहुल उपाध्याय । 5 मार्च 2022 । सिएटल
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