आई बसंत
तो हुआ बस अंत
जाड़े का
ठिठुरने का
सिरहाने से ले कर
पाँव तक
गुदड़ी में छुप के
सिहरने का
लाल-पीली-टोपी में
गंजे सर के
गंजे सर के
दुबकने का
आई बसंत
तो हुआ बस अंत
फ़ायर-प्लेस के जलने का
हॉट सूप को पीने का
रसम की रस्म निभाने का
आई बसंत
तो हुआ बस अंत
बसों में घर जाने का
मुँह-अंधेरे घर से निकलने का
स्कूल बंद होने की आस रखने का
गाड़ी के फिसल जाने का
पहाड़ों पे चिपकी सफ़ेदी का
आई बसंत
तो आया समझ
कि
कुछ खोना है
कुछ पाना है
जीवन का मतलब
दोनों को दिल में
संजोना है
वैसे भी
दोनों का काम ही है
संजोना
चाहे रायता हो
या रबड़ी
खीर हो
या सब्ज़ी
लाज रक्खी
इन्होंने सबकी
14 मार्च 2014
सिएटल । 513-341-6798
Friday, March 14, 2014
आई बसंत
Posted by Rahul Upadhyaya at 7:14 PM
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2 comments:
"आई बसंत
तो आया समझ
कि
कुछ खोना है
कुछ पाना है
जीवन का मतलब
दोनों को दिल में
संजोना है"
Nature हमें यही सिखाती है कि आना, जाना, और फिर आना - इस लय में nature के cycles चलते हैं - समय कभी एक सा नहीं रहता। बस nature में यह cycles time-bound और predictable हैं मगर हमारे जीवन में इनका कोई pre-defined समय नहीं है।
"रसम की रस्म" का wordplay अच्छा लगा! :) और "बसंत" का "बस अंत" भी! और "सिरहाने" और "सिहरने का! "सिहरने" का meaning शब्दकोष में देखा!
nice
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