न तुम होते, न हम होते
तो फिर कहाँ ग़म होते
'गर होता कोई घर भी कहीं
तो हम न यहाँ सनम होते
दल होता, दलदल होते
झगड़े बड़े विषम होते
हाँ में हाँ मिलाते मगर
ख़्वामख़ाह आपको वहम होते
न रूठता राहुल, न मनता कभी
तो यार भी यारो कम होते
16 नवम्बर 2014
सिएटल | 513-341-6798
1 comments:
कविता की हर दो lines अच्छी लगीं। यह lines मज़े की हैं :
"हाँ में हाँ मिलाते मगर
ख़्वामख़ाह आपको वहम होते"
"म" से end होने वाले शब्दों में "विषम" और "वहम" का चुनाव अच्छा लगा।
आख़री की lines से ending बढ़िया हुई:
"न रूठता राहुल, न मनता कभी
तो यार भी यारो कम होते"
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