कब किसने किसको घर जाते देखा
सबने सबको बस इधर आते देखा
कोई होता घर पर तो घर भी होता
बेटा-बहू सबको हमने कमाते देखा
सब के सब हैं अपनी धुन में मगन
न सुनते किसी को न सुनाते देखा
जहाँ हो अपने, वहीं लगता है मन
मगर किसने किसको अपनाते देखा
बड़ा सा घर है और कोई बड़ा नहीं है
बच्चे बढ़े, तो उन्हें भी कदम बढ़ाते देखा
7 नवम्बर 2014
सिएटल । 513-341-6798
सबने सबको बस इधर आते देखा
कोई होता घर पर तो घर भी होता
बेटा-बहू सबको हमने कमाते देखा
सब के सब हैं अपनी धुन में मगन
न सुनते किसी को न सुनाते देखा
जहाँ हो अपने, वहीं लगता है मन
मगर किसने किसको अपनाते देखा
बड़ा सा घर है और कोई बड़ा नहीं है
बच्चे बढ़े, तो उन्हें भी कदम बढ़ाते देखा
7 नवम्बर 2014
सिएटल । 513-341-6798
1 comments:
दस lines की कविता में कितनी touching बातें हैं! "कोई होता घर पर तो घर भी होता" - जब घर के लोग सारा दिन घर से बाहर रहते हों , या साथ रहकर भी एक दुसरे से दिल खोलकर बात न करते हों, तो घर सिर्फ ईंट-पत्थर का बेजान मकान ही रह जाता है, उसमें soul missing रहती है। Last की दो lines - "बड़ा सा घर है और कोई बड़ा नहीं है, बच्चे बढ़े, तो उन्हें भी कदम बढ़ाते देखा" - wordplay में बढ़िया हैं और बात भी गहरी कहती हैं। इन सब बातों को एक साथ, कविता के रूप में पढ़ना बहुत अच्छा लगा! कविता में शब्दों का खेल - "कब किसने किसको," "सबने सबको," "सुनते सुनाते,"बड़ा, बढ़े, बढ़ाते" - भी अच्छा लगा!
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