Saturday, June 20, 2020

लोग ज़ालिम होते तो

लोग ज़ालिम होते तो
बातों-बातों में मेरा ज़िक्र भी ले आते

लेकिन लोग इतने सभ्य हैं कि
सब कुछ जानते हुए भी
अनजान बनते हैं
बेवजह उदासी का सबब
नहीं पूछते हैं
ये भी नहीं पूछते हैं कि
तुम इतने परेशां क्यूँ हो?
जगमगाते हुए लम्हों से
गुरेज़ाँ क्यूँ हो?
उँगलियाँ नहीं उठाते हैं
सूखे हुए बालों की तरफ़ 
एक नज़र नहीं डालते हैं
गुज़रे हुए सालों की तरफ़ 
काँपते होंठ
नज़रअंदाज़ कर दिए जाते हैं
पनीली आँखें देख
हाथ पर हाथ धरे
बैठे रहते हैं

वे थोड़े भी
असभ्य होते तो
कुछ तो असर होता

बात निकलती तो 
दूर तलक जाती

(कफ़ील आज़र अमरोहवी से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 20 जून 2020 । सिएटल
——-
गुरेज़ाँ = भाग जाना

इससे जुड़ीं अन्य प्रविष्ठियां भी पढ़ें


0 comments: