Thursday, August 1, 2024

हम सब एक हैं

स्विच दबाते ही हो जाती है रोशनी

सूरज की राह मैं तकता नहीं

 

गुलाब मिल जाते हैं बारह महीने

मौसम की राह मैं तकता नहीं


इंटरनेट से मिल जाती हैं दुनिया की खबरें

टीवी की राह मैं तकता नहीं

  

डिलिवर हो जाता हैं बना बनाया खाना

बीवी की राह मैं तकता नहीं


खुद की ज़रुरतें हैं कुछ इतनी ज़्यादा 

कारपूल की चाह मैं रखता नहीं

 

होटलें तमाम हैं हर एक शहर में

लोगों के घर मैं रहता नहीं


जो चाहता हूँ वो मिल जाता मुझे है

किसी की राह मैं तकता नहीं

 

किसी की राह मैं तकता नहीं

कोई राह मेरी भी तकता नहीं

 

कपड़ों की सलवट की तरह रिश्ते बनते-बिगड़ते हैं

रिश्ता यहाँ कोई कायम रहता नहीं


तत्काल परिणाम की आदत है सबको

माइक्रोवेव में तो रिश्ता पकता नहीं


किसी की राह मैं तकता नहीं

कोई राह मेरी भी तकता नहीं

 

राहुल उपाध्याय । 19 दिसम्बर 2007 । सिएटल 


http://mere--words.blogspot.com/2007/12/blog-post_19.html


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3 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

सुन्दर

कविता रावत said...

तत्काल परिणाम की आदत है सबको
माइक्रोवेव में तो रिश्ता पकता नहीं
और
किसी की राह मैं तकता नहीं
कोई राह मेरी भी तकता नहीं
....बहुत सही आजकल नाते रिश्ते सब आभासी दुनिया के ही समझने लगे है सब,,,,,,

आलोक सिन्हा said...

सुन्दर