Friday, February 8, 2008

पहेली 3


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

जो कल था
वही फिर कल होगा
उसका जवाब कल भी कल था
और हमेशा की तरह कल भी कल होगा

मैंने तो चाहा था
उसके आगोश में रहना
पर दुनिया ने कहा
भाई साहब, ये तो है बहना

डरती है वो दुनिया से शायद
इसीलिए जो कल था
वही फिर कल होगा
और उसका जवाब
हमेशा की तरह सिर्फ़ कल-कल होगा

उसकी अनवरत कल-कल से
अभी तक भरे नहीं हैं मेरे कलसे

शायद होगी उसे दुनिया की शरम
या हैं ये न मिलने के बहाने
पर चाहे जो भी हो वजह
मुझे तो आंसू नहीं हैं बहाने

लाख बंदिशे चाहे लगा ले ज़माना
आशिक को तो अपना सिक्का जमाना

भले ही पहचानी जाती हो परी शरम से
आदमी तो पहचाना जाता है अथक परिश्रम से

बूझो कौन है वो जिसे मैं इतना चाहूं
कि उसकी आस में हर दिन दीप जलाउं
[इस पहेली का हल अंतिम पंक्ति में छुपा हुआ है। ध्यान से देखे तो साफ़ नज़र आ जाएगा। उदाहरण के तौर पर देखे 'पहेली 1'
आप चाहे तो इसका हल comments द्वारा यहां लिख दे। या फिर मुझे email कर दे इस पते पर - upadhyaya@yahoo.com
]

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7 comments:

Anonymous said...

NEEND.


SHER

Anonymous said...

दिनदीप

Anonymous said...

हरदिन

Ignore my previous post

Unknown said...

nadi

Anonymous said...

Nadi

Anonymous said...

samay?

Anonymous said...

samay or waqt