Wednesday, September 30, 2020

सूरज

क्या आप माँग कर खाते हैं?

क्या आप माँग कर पहनते हैं?

तो फिर माँग कर क्यों पढ़ते हैं?


यह विज्ञापन इतना घर कर गया कि

सब नया-नया लेने लगा

मेरा अपना

नई कार

नया घर

नया फ़र्नीचर 


लेकिन 

इस सूरज का क्या करूँ?

पूरब वाले 

सारा दिन 

जब इसे निचोड़ लेते हैं 

तब

मेरे हाथ आता है

एक सेकण्ड हैण्ड सूरज 


-॰-॰-॰-॰-॰


अब यह इतना बुरा नहीं लगता है 

बल्कि ख़ुशी होती है

कि यह तुम्हें देख कर आया है 

कि इसके प्रकाश में तुम्हारा तेज भी शामिल है 


तुम्हारी 

आँखों की चमक

होंठों की हँसी 

चेहरे की रंगत 

सब साथ लाता है


सरेआम 

दिन-दहाड़े 

तुमसे लेता है 

मुझे देता है 

और

किसी को 

कानों-कान 

ख़बर नहीं होती है 


इससे पुख़्ता 

एंड-टू-एंड एनक्रिप्शन

और क्या होगा?


राहुल उपाध्याय । 30 सितम्बर 2020 । सिएटल 



Monday, September 28, 2020

वर्णमाला

कमसिन से

ख़ता 

ग़लती 

घड़ी-घड़ी हो जाती है 


चलते-चलते

छत पे

जब-तब

झेंप जाती है 


टूटेगा दिल जो

ठुकराएगी वो

डरती रहती है 

ढाई आखर के प्यार से वो


तन

थरथराए

दिल

धड़के

नस-नस तड़पे 


परिवार

फ़ैमिली 

बच्चे 

भी 

मन में हैं


यदा-कदा नहीं 

रात-दिन

लगातार

वहम

शक 

षड्यंत्र

सब 

हावी होते जाते हैं 


क्षण-क्षण

त्रिकोण के

ज्ञापन से सहम जाती है 


ऋचाएँ बनतीं-बिगड़तीं जातीं हैं


राहुल उपाध्याय । 28 सितम्बर 2020 । सिएटल 

Saturday, September 26, 2020

इतवारी पहेली: 2020/09/27


इतवारी पहेली:


हम गा रहे हैं गीत किस शान के, ## ## #

जबकि बुझते जा रहे हैं दीप उधर ### #


दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya 


आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 


सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 4 अक्टूबर को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 27 सितम्बर 2020 । सिएटल

उत्तर: किस आन के/किसान के


मेरा-तेरा नाम है

न आराम हराम है

न हराम ही हराम है

जिधर देखूँ नज़र में

मेरा-तेरा नाम है 


टीवी पर, अख़बार में

संग्राम है, कोहराम है

जिधर देखूँ नज़र में

मेरा-तेरा नाम है 


काव्य में, वाक्य में

अर्धविराम है, पूर्णविराम है 

जिधर देखूँ नज़र में

मेरा-तेरा नाम है 


कोई मिले तो राम-राम है 

कोई मरे तो राम-नाम है

जिधर देखूँ नज़र में

मेरा-तेरा नाम है 


सुबह है, शाम है

कोई भी मुक़ाम है

जिधर देखूँ नज़र में

मेरा-तेरा नाम है 


राहुल उपाध्याय । 26 सितम्बर 2020 । सिएटल 


कहीं ड्रग्स मिले कहीं बिल

https://youtu.be/eCarTOPXr0o


कहीं ड्रग्स मिले कहीं बिल

ज़रा सोच ले ऐ प्रेस वाले

तेरी कौन सी है मंज़िल


मेरे दर्द से तुझे इंकार है 

जहाँ मैं नहीं वहीं अख़बार है 

मेरी बात रही मेरे दिल


ना मैं दीपिका हूँ ना कोई सुशांत हूँ

एक दर्द भरी आवाज़ हूँ

जिसे सुनना है मुश्किल 


दुश्मन हैं हज़ारों यहाँ जान के

ज़रा मिलना नज़र पहचान के

कई रूप में हैं क़ातिल


(शकील बदायुनी से क्षमायाचना सहित)

राहुल उपाध्याय । 26 सितम्बर 2020 । सिएटल 


Friday, September 25, 2020

कवि ज़ूम ज़ूम करे

https://youtu.be/KLYpp3kliP0


कवि ज़ूम ज़ूम करे

तड़पाए

बक बक बक करे, 

सर खाए 

एक बात कभी अक्कल की 

कवित्त में नज़र न आए


तेरी झोली डारूँ, 

सब गाली हाथ जो आए

तेरे पीछे खोए 

जो घण्टे लौट के न वो आए


जिस धुन को चुना तूने 

उससे सर मैं धुनाऊँ

जिस घड़ी हाथ आया तेरे 

उसे कैसे भुलाऊँ 

और मेरा व्हाट्सेप,

तेरी पोस्ट से भर-भर जाए

ये ऐसी बीमारी, 

कि मैंने नेट लिए कटवाए


(गुलज़ार से क्षमायाचना सहित)

राहुल उपाध्याय । 25 सितम्बर 2020 । सिएटल 


Thursday, September 24, 2020

भजो राम प्यारे

भजो राम प्यारे 

मिटे रोग सारे

यदि ट्रम्प या मोदी 

कहे लगा के नारे 

कहेंगे सब इनका 

है दिमाग फिरा रे

यही कहे तुलसी

तो लगे संत न्यारे


हमसे बढ़ा शातिर 

है कोई और कहाँ रे 

हर जगह से अपेक्षा 

है अलग सदा से

डॉक्टर से न माँगे 

ग्रहों के उपचार आदि

पंडितों से न माँगे 

किसी दर्द की दवा रे


राहुल उपाध्याय । 24 सितम्बर 2020 । सिएटल 


Wednesday, September 23, 2020

मदमस्त धुन

चाँद वही

सूरज वही

बादल अलग

प्यास वही


तेरी शाम ढले 

मैं आँख मलूँ

तू सोए

मैं क्या ख़ाक जगूँ


तेरी सुबह हो

मेरी शाम आए

तू दर्पण तके

मुझे आराम आए


तू माँग सजाए

मैं ख़्वाब सजाऊँ 

तेरी नस-नस में 

मैं समा जाऊँ 


तुझे थाम लूँ 

तेरी बाँह धरूँ 

हर लम्हा 

तुझे प्यार करूँ 


तू गुनगुनाए

अल्हड़ हँसे 

श्रृंगार रस के

सारे रंग फीके पड़े


मैं लिखूँ जिसे

तू उसे पढ़े

आँख से आँख 

ऐसे लड़े


तेरी साँस चले

तो मेरी साँस चले

सच नहीं पर

सच आज लगे


हम कब मिले

कुछ याद नहीं 

है सात जनम का

यह साथ नहीं 


राहुल उपाध्याय । 23 सितम्बर 2020 । सिएटल 


धन्य कोरोना!

धन्य कोरोना!

तेरे कारण 

न पाँव लागूँ

न पाँव पड़ूँ 

न किसी को सर चढ़ाऊँ 


धन्य कोरोना!

तेरे कारण 

न गले लगूँ

न कोई गले पड़े

न किसी का दम घुटे


धन्य कोरोना!

तेरे कारण 

न कोई हाथ मिलाए

न किसी के हाथ लगूँ

दो हाथ दूर सब लोग रहे


धन्य कोरोना!

तेरे कारण 

न आए कोई

न जाऊँ कहीं 

झूठ बोलूँ-सुनूँ नहीं 


धन्य कोरोना!

तेरे कारण 

न कोई उँगली पकड़े

न पहुँचे तक पहुँचे

रूहानी मोहब्बत रूहानी रहे


राहुल उपाध्याय । 23 सितम्बर 2020 । सिएटल 


Tuesday, September 22, 2020

मैं कहीं कवि न बन जाऊँ

मैं कहीं कवि न बन जाऊँ तेरे प्यार में ऐ कविता


तुझे डी-पी के आईने में मैंने बार-बार देखा

तेरे स्टेटस में देखा तो छलकता प्यार देखा

तेरा टेक्स्ट मैंने देखा तो जिगर के पार देखा


तेरा ब्लॉग है सलोना तेरी पोस्ट में कसक है

तेरे वीडियो में है जादू तेरे बोल में खनक है

तेरी हर अदा मुहब्बत तू यूट्यूब की धनक है


मेरा दिल लुभा रहा है तेरा रूप सादा सादा

ये झुकी-झुकी निगाहें करे प्यार और ज़्यादा 

ये जग ये भाँप लेगा, है यही डर सताता


(हसरत जयपुरी से क्षमायाचना सहित)

राहुल उपाध्याय । 21 सितम्बर 2020 । सिएटल 

धनक = इन्द्रधनुष 

https://youtu.be/_8V8XYB5YsA 


Monday, September 21, 2020

फ़ेसबुक की तरह

फ़ेसबुक की तरह

हँसता ही रहा हूँ मैं 

कभी इस 'पोज़' में 

कभी उस 'पोज़' में 

हँसता ही रहा हूँ मैं 


मैं देता रहा

ख़ुशख़बरियाँ कई

मेरी बात मेरे

मन ही में रही

यूँही घुट-घुट के

यूँही झूठमूठ में 

हँसता ही रहा हूँ मैं 


कैसे जुड़ गया

कैसे जोड़ा गया

किस-किससे मुझे

फिर जोड़ा गया

कभी इस गुट में 

कभी उस गुट में 

हँसता ही रहा हूँ मैं 


अपनों की सुनूँ 

या कि ग़ैरों की

हर तरफ़ है फ़ौज 

बे-सर-पैरों की

कभी इस तर्क पे

कभी उस तर्क पे

हँसता ही रहा हूँ मैं 


(रवीन्द्र जैन से क्षमायाचना सहित)

राहुल उपाध्याय । 23 जून 2017 । सिएटल

 https://youtu.be/xsR8jn9_Vqk 


Sunday, September 20, 2020

इतवारी पहेली 2020/09/20


इतवारी पहेली:


हालत जो बिगड़ी है भाषण से ## #

क्या सम्हाल लेगा शोले का ## ##


दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya 


आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 


सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 27 सितम्बर को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 20 सितम्बर 2020 । सिएटल


हल: जया के/जय आके


Friday, September 18, 2020

न वो बाहर आए, न वो बहार आए

न वो बाहर आए, न वो बहार आए

कम उम्र में ही रोज़-ए-इंतज़ार आए


इससे पहले कि दाढ़ी-मूँछें आतीं

उनको पाने के गुर हज़ार आए


इसे ही तो प्यार कहते हैं प्यार करने वाले

कि जब किसी और पे न और प्यार आए


लगा है लड़कपन से हमें प्रेम-रोग ऐसा

कि कभी नज़र में न हम बीमार आए


हमने भी किसी को चाहा था कुछ ऐसे 

याद शिमला के दिन देख इश्तहार आए


राहुल उपाध्याय । 18 सितम्बर 2020 । सिएटल 

——

गुर = तरकीब 


Thursday, September 17, 2020

कली तो गुलशन में खिली रहती है


कली तो गुलशन में खिली रहती है


आजकल के नेताओं का ऐसा बुरा हाल है

इन्हें तो ट्वीटर की लगी रहती है


आजकल के कवियों का ऐसा बुरा हाल है

इन्हें तो फ़ेसबुक की लगी रहती है


आजकल की फ़िल्मों का ऐसा बुरा हाल है

इन्हें तो ओ-टी-टी की लगी रहती है


आजकल के बूढ़ों का ऐसा बुरा हाल है

इन्हें तो व्हाट्सएप की लगी रहती है


आजकल के बच्चों का ऐसा बुरा हाल है

इन्हें तो इन्स्टाग्राम की लगी रहती है


आजकल के संतों का ऐसा बुरा हाल है

इन्हें तो यूट्यूब की लगी रहती है


आजकल के भक्तों का ऐसा बुरा हाल है

इन्हें तो प्रसाद की लगी रहती है


आजकल के डॉक्टरों का ऐसा बुरा हाल है

इन्हें तो फ़ीस की लगी रहती है


राहुल उपाध्याय । 17 सितम्बर 2020 । सिएटल 

https://youtu.be/pi29eMdNT6M