कहीं ड्रग्स मिले कहीं बिल
ज़रा सोच ले ऐ प्रेस वाले
तेरी कौन सी है मंज़िल
मेरे दर्द से तुझे इंकार है
जहाँ मैं नहीं वहीं अख़बार है
मेरी बात रही मेरे दिल
ना मैं दीपिका हूँ ना कोई सुशांत हूँ
एक दर्द भरी आवाज़ हूँ
जिसे सुनना है मुश्किल
दुश्मन हैं हज़ारों यहाँ जान के
ज़रा मिलना नज़र पहचान के
कई रूप में हैं क़ातिल
(शकील बदायुनी से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 26 सितम्बर 2020 । सिएटल
1 comments:
बहुत खूब
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