Monday, September 21, 2020

फ़ेसबुक की तरह

फ़ेसबुक की तरह

हँसता ही रहा हूँ मैं 

कभी इस 'पोज़' में 

कभी उस 'पोज़' में 

हँसता ही रहा हूँ मैं 


मैं देता रहा

ख़ुशख़बरियाँ कई

मेरी बात मेरे

मन ही में रही

यूँही घुट-घुट के

यूँही झूठमूठ में 

हँसता ही रहा हूँ मैं 


कैसे जुड़ गया

कैसे जोड़ा गया

किस-किससे मुझे

फिर जोड़ा गया

कभी इस गुट में 

कभी उस गुट में 

हँसता ही रहा हूँ मैं 


अपनों की सुनूँ 

या कि ग़ैरों की

हर तरफ़ है फ़ौज 

बे-सर-पैरों की

कभी इस तर्क पे

कभी उस तर्क पे

हँसता ही रहा हूँ मैं 


(रवीन्द्र जैन से क्षमायाचना सहित)

राहुल उपाध्याय । 23 जून 2017 । सिएटल

 https://youtu.be/xsR8jn9_Vqk 


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6 comments:

कविता रावत said...

बहुत खूब जमाई है
बराबर बात आई है

सुशील कुमार जोशी said...

वाह

Pammi singh'tripti' said...


आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 23 सितंबर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Dr (Miss) Sharad Singh said...

बहुत रोचक रचना राहुल उपाध्याय जी !!!

Dr Varsha Singh said...

मज़ा आ गया भाई राहुल उपाध्याय, कमाल की पैरोडी बनाई है आपने 👌👌👌😃

बहुत शुभकामनाएं आपको 💐🙏💐

अनीता सैनी said...

बहुत ही सुंदर।