न वो बाहर आए, न वो बहार आए
कम उम्र में ही रोज़-ए-इंतज़ार आए
इससे पहले कि दाढ़ी-मूँछें आतीं
उनको पाने के गुर हज़ार आए
इसे ही तो प्यार कहते हैं प्यार करने वाले
कि जब किसी और पे न और प्यार आए
लगा है लड़कपन से हमें प्रेम-रोग ऐसा
कि कभी नज़र में न हम बीमार आए
हमने भी किसी को चाहा था कुछ ऐसे
याद शिमला के दिन देख इश्तहार आए
राहुल उपाध्याय । 18 सितम्बर 2020 । सिएटल
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गुर = तरकीब
1 comments:
बहुत खूब।
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