Friday, September 18, 2020

न वो बाहर आए, न वो बहार आए

न वो बाहर आए, न वो बहार आए

कम उम्र में ही रोज़-ए-इंतज़ार आए


इससे पहले कि दाढ़ी-मूँछें आतीं

उनको पाने के गुर हज़ार आए


इसे ही तो प्यार कहते हैं प्यार करने वाले

कि जब किसी और पे न और प्यार आए


लगा है लड़कपन से हमें प्रेम-रोग ऐसा

कि कभी नज़र में न हम बीमार आए


हमने भी किसी को चाहा था कुछ ऐसे 

याद शिमला के दिन देख इश्तहार आए


राहुल उपाध्याय । 18 सितम्बर 2020 । सिएटल 

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गुर = तरकीब 


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