जब तक न हो सूरज का साथ
क्या तब तक न कहूँ मैं अपनी बात?
अंधों के बीच काणा हूँ मैं
आता हूँ काम, हो दिन या रात
कुछ समझ रहे, कुछ बिगड़ रहे
मेरे विकास में है सबका साथ
अकेला चना ना भाड़ फोड़े सही
वट वृक्ष को देता बीज लाखों पात
इस उम्र में क्या होऊँ हताश
है हर दिन नेमत, हर दिन सौग़ात
राहुल उपाध्याय । 3 सितम्बर 2020 । सिएटल
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वाह
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