Sunday, September 13, 2020

एक मंत्री को देखा तो ऐसा लगा

एक मंत्री को देखा तो ऐसा लगा, 

जैसे चढ़ता बुख़ार, 

जैसे डरता बीमार, 

जैसे कल की दाल, 

जैसे ठरकी साँड़, 

जैसे चुभती फाँस, 

जैसे बुझता चिराग़, 

जैसे दंगल में हो कोई खोजता ज़ुबां, 


एक मंत्री को देखा तो ऐसा लगा, 

जैसे डूबता जहाज़, 

जैसे सूखता गुलाब, 

जैसे झड़ती बहार, 

जैसे चीख़ती पुकार, 

जैसे खोखली दहाड़, 

जैसे टूटता मकान, 

जैसे जंगल में हो कोई खौलता कुआँ


एक मंत्री को देखा तो ऐसा लगा, 

जैसे गिरती गाज, 

जैसे उड़ती राख, 

जैसे फटा पजामा, 

जैसे सड़ता पपीता, 

जैसे खटारा हो बस, 

जैसे बहता हो पस, 

जैसे आहिस्ता आहिस्ता फैलता धुआँ


https://youtu.be/ZcxJlbg9Ds4 

(जावेद अख़्तर से क्षमायाचना सहित)

राहुल उपाध्याय । 10 सितम्बर 2020 । सिएटल 


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1 comments:

Prakash Sah said...

वाह! नेताजी को अच्छा लगा होगा।
भिन्न सृजन है....पर सत्य है।
बढ़िया है सर!!