Wednesday, September 23, 2020

मदमस्त धुन

चाँद वही

सूरज वही

बादल अलग

प्यास वही


तेरी शाम ढले 

मैं आँख मलूँ

तू सोए

मैं क्या ख़ाक जगूँ


तेरी सुबह हो

मेरी शाम आए

तू दर्पण तके

मुझे आराम आए


तू माँग सजाए

मैं ख़्वाब सजाऊँ 

तेरी नस-नस में 

मैं समा जाऊँ 


तुझे थाम लूँ 

तेरी बाँह धरूँ 

हर लम्हा 

तुझे प्यार करूँ 


तू गुनगुनाए

अल्हड़ हँसे 

श्रृंगार रस के

सारे रंग फीके पड़े


मैं लिखूँ जिसे

तू उसे पढ़े

आँख से आँख 

ऐसे लड़े


तेरी साँस चले

तो मेरी साँस चले

सच नहीं पर

सच आज लगे


हम कब मिले

कुछ याद नहीं 

है सात जनम का

यह साथ नहीं 


राहुल उपाध्याय । 23 सितम्बर 2020 । सिएटल 


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