चाँद वही
सूरज वही
बादल अलग
प्यास वही
तेरी शाम ढले
मैं आँख मलूँ
तू सोए
मैं क्या ख़ाक जगूँ
तेरी सुबह हो
मेरी शाम आए
तू दर्पण तके
मुझे आराम आए
तू माँग सजाए
मैं ख़्वाब सजाऊँ
तेरी नस-नस में
मैं समा जाऊँ
तुझे थाम लूँ
तेरी बाँह धरूँ
हर लम्हा
तुझे प्यार करूँ
तू गुनगुनाए
अल्हड़ हँसे
श्रृंगार रस के
सारे रंग फीके पड़े
मैं लिखूँ जिसे
तू उसे पढ़े
आँख से आँख
ऐसे लड़े
तेरी साँस चले
तो मेरी साँस चले
सच नहीं पर
सच आज लगे
हम कब मिले
कुछ याद नहीं
है सात जनम का
यह साथ नहीं
राहुल उपाध्याय । 23 सितम्बर 2020 । सिएटल
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