मुझे तुमसे कुछ भी न चाहिए
मेरे पास मेरा जमीर है
तुम्हें हो मुबारक महफ़िलें
मेरे पास मेरा कबीर है
कभी चाह थी कि महल हो
कहीं अपना भी महल हो
फिर वो चली आँधियाँ
हर आँख उठी सजल हो
मुझे रूला सके वो चीज़ नहीं
वो चीज़ नहीं, न वो पीर है
हर रात थक के मैं सोता हूँ
बीज दिन में रात के बोता हूँ
इतने बड़े जहान में
दुख है न, दुखी मैं होता हूँ
जो बिक गया वो ग़रीब है
जो न बिक सका अमीर है
राहुल उपाध्याय । 15 जुलाई 2022 । जम्मू
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