तेरे शहर का नाम भी
मुझे तेरे क़रीब ले आता है
तेरे शहर का नाम देख
मैं साँसों में तुझको पाता हूँ
तू इतने क़रीब हो कर भी
मेरी आँखों से कितनी दूर है
तू मुझे चाहेंगी उम्र भर
यह तय है
तू कभी मेरी न होगी
यह भी तय है
तुझे पा के खोने के
दुर्दिन कभी न आएँगे
तू रहेगी चाँद
जो
घटता है
बढ़ता है
आता है
जाता है
और किसी के हाथ न आता है
तू
नेक है
सुशील है
बदमाश है
जिसे कर्तव्यों का सदा अहसास है
तू
नूर है उस जहान की
जहां मेरा कोई निशान नहीं
फिर भी हमारी पटरी जुड़ी
इसका मुझे अभिमान है
तू फूल है
मैं शूल हूँ
तू पाक है
मैं ख़ाक हूँ
तभी तो हमारा न मेल है
तभी तो हमारा साथ है
राहुल उपाध्याय । 8 जुलाई 2022 । गौतमपुरा रोड
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