Thursday, July 14, 2022

पॉपकॉर्न देशभक्ति

मैं कल 

उस गली के द्वार तक जाकर आया

जिसके उस पार जाते ही

आदमी की सोच बदल जाती है 

देशद्रोही क़रार दिया जाता है 

हज़ारों फ़ॉर्म पर

हज़ारों बार भरना पड़ता है 

कि

आप वहाँ कब, क्यूँ और कैसे गए

किससे मिले

कहाँ खाया-पीया 

क्या-क्या खाया-पीया


और हाँ वहाँ रोज़ सूर्यास्त के वक्त 

सर्कस भी होता है 

जहाँ छाती ठोंक कर

दुश्मनी का जयघोष किया जाता है 

उनकी आवाज़ हमारे कानों में न पड़ जाए

इसलिए ज़बरदस्ती ज़बरदस्त शोर करवाया जाता है 

बॉलीवुड के गानों पर 

(लता वाले नहीं, कविता कृष्णमूर्ति के)

(दिल दिया है जाँ भी देंगे, ऐ वतन तेरे लिए)

दर्शकों में से लड़कियों से 

(जी, सिर्फ़ लड़कियों से)

नाचने को कहाँ जाता है 

वे मस्त हो कर नाचती हैं

आक्रमण के भाव में 

बड़े-बड़े झण्डे फहरातीं है 

दर्शक दीर्घा में बैठे हम

ताली बजाते हैं 

नारे लगाते हैं 

आईसक्रीम खाते हैं 

पॉपकॉर्न खाते हैं 

शो ख़त्म होता है 

सब घर चले जाते हैं 


पॉपकॉर्न ख़त्म 

देशभक्ति ख़त्म 


सीमा सुरक्षा बल के जवान

जिस पथ पर परेड करते हैं 

उसी पथ पर उनसे कंधा मिलाकर 

खोमचे वाले पॉपकॉर्न बेचते हैं 

गरिमा पर आँच आने की 

किसी को चिंता नहीं है 

हम सोचते हैं जवान आएगा 

और पॉपकॉर्न वाला निकल आता है 


जिस दिन

दुश्मनी का भाव ख़त्म हुआ

यह शो बंद हो जाएगा 

दुश्मनी इसके प्राण हैं


अमृतसर से मात्र पन्द्रह मील दूर है लाहौर 

इतनी कम दूरी पर शायद ही कोई शहर हों

और इतने ज़्यादा दूर भी शायद ही कोई हो


(अटारी सीमा पर जाने के बाद)

राहुल उपाध्याय । 14 जुलाई 2022 । जम्मू 

http://mere--words.blogspot.com/2022/07/blog-post_49.html?m=1








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