चक्र जीवन का एक पल ठहरता नहीं
वक्त एक सा किसी का भी रहता नहीं
माथ अपना झुकाने मैं आया यहाँ
शान अपनी मिटाने मैं आया यहाँ
लड़ता हूँ रोज़ हज़ारों दिशाओं से मैं
मानता हूँ कि सब कुछ चलाता हूँ मैं
बाल-बच्चों का जीवन ख़ुशहाल हो
इसलिए झंझट हज़ारों उठाता हूँ मैं
जबकि तू ही तो है जो कि करतार है
राह फिर से ये पाने मैं आया यहाँ
हार पाई भी मैंने, तो पहना भी हार
सुख पाया भी मैंने, तो रोया बहुत
सब माया तेरी, न आई समझ
बार-बार सोचा कि खोया बहुत
कई बार तुझको तो कोसा भी है
आज तुझको मनाने मैं आया यहाँ
लोग मिलते गए, लोग बिछड़ते गए
बंधु-बांधव से तकरार भी हो गए
दिल लगाया कभी, दिल दुखाया कभी
कसमें-वादे सभी सब हवा हो गए
तू ही तो मेरा जो सदा साथ है
हाथ अपना थमाने मैं आया यहाँ
राहुल उपाध्याय । 20 जुलाई 2022 । बनिहाल (कश्मीर)
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