ये सदी सुन रही है, ये सदी गा रही है
राह मेरे जहां की कहाँ जा रही है
तोड़ के पर्वतों को बुत नए हैं बनाए
रंग फूलों पे अपने, अपने रंग सजाए
हर तरफ़ एक जैसी हवा छा रही है
खोट जिनके हैं दिल में, ख़ुदा वो बने हैं
हाथ ख़ंजर हैं जिनके, मसीहा बने हैं
आस जिनसे थी उनसे क़ज़ा आ रही है
साथ जिनका था उनसे बहाने मिले हैं
प्यार की राह खोजी, फ़साने मिले हैं
ज़िन्दगी ज़िन्दगी से आज शरमा रही है
राहुल उपाध्याय । 4 जुलाई 2022 । रतलाम
क़ज़ा = मौत
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