जो है
उसे दुत्कारते हैं
जो है नहीं
उसे पाना है
तेरे मेरे जीवन का
शेष यही अफ़साना है
जो है नहीं
याद आता है
जो है
गाँठ बन जाता है
दो बोल हँसी के
तब मिलते हैं
जब पल मिलन के
कम होते हैं
सुबह-शाम-दिन-रात मिलो तो
बर्तन-भाण्डे से लगते हैं
राहुल उपाध्याय । 9 जुलाई 2022 । भादवा माता
(यहाँ मेरा एक भाई, अनिल, ढाई साल की उम्र में गुज़र गया था। मैंने उसे कभी देखा नहीं। लेकिन सोच के बहुत दुख होता है।)
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