तेरी ख़ुशबू को मैं ढूँढूँगा पहाड़ों में कभी
अभी मशरूफ़ हूँ गुणा-भागों में कहीं
ये गफ़लत है तो गफ़लत ही सही
कि मैं आता हूँ तेरे ख़यालों में कभी
ज़िंदगी मौत के साए से हटे भी तो कैसे
रोज़ पढ़ता हूँ हादसे रिसालों में कई
मेरी आँखों में है आग तो है पानी भी कहीं
जलते-बुझते हैं नयन दो सितारों से कहीं
यक़ीं आता है कि थे हम क़रीब ओ हसीं
जब ज़िक्र होता है तेरा सवालों में कभी
1 दिसम्बर 2016
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