अपने ही हाथों
बुझाता हूँ अपना दीया
लगा के अलार्म
छुपा के सर
ओढ़ के पाबंदियाँ
मुझे क्या पता
कि वो था आख़री दिन
जल रहा था दीप
जलने ना दिया
आदत के वशीभूत
हम हैं इतने स्वचालित
कि 'हाऊ आर यू' के जवाब पे
तवज्जो न किया
चलते-फिरते ही
सब कुछ हो जाता है आजकल
न मंडप, न रंगत
कोर्ट में ही विदा हो जाती हैं लड़कियाँ
मैंने हमेशा कहा
कि तुम थी ग़लत
चलो दोनों में से एक ने
कुछ तो सही किया
6 दिसम्बर 2016
सिएटल | 425-445-0827
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