Saturday, December 10, 2016

ठण्ड है चारों तरफ़

ठण्ड है चारों तरफ़ 
पर घासफूस पर ज़्यादा ही है
पानी हो जहाँ 
वहाँ बर्फ़ जम जाता ही है

खारा पानी
हो समन्दर का
या आँख का
अथाह है
एक बहता नहीं 
दूसरा बहता जाता है

बरसे बादल, भरे समन्दर 
भरे मन, बरसे आँखें 
कहीं भरना शुभ है, कहीं अशुभ है
बरसना बुरा कहीं, तो कहीं अच्छा है
शब्दावली के शब्दों का
अर्थ उलझता जाता है

ठण्ड-गर्मी आदि जो मौसम हैं
उचित अनुपात में ही रोचक हैं

बर्फ़ पड़े, बच्चे हर्षाए
बर्फ़ जमे, कारें अड़ जाए

उचित अनुपात ही जीवन दर्शन है
जीवन सुख-दुख का संतुलित मिश्रण है

कभी भरा है, कभी खला है
कभी भाया है, कभी खला है

10 दिसम्बर 2016
सिएटल | 425-445-0827
tinyurl.com/rahulpoems 

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