ठण्ड है चारों तरफ़
पर घासफूस पर ज़्यादा ही है
पानी हो जहाँ
वहाँ बर्फ़ जम जाता ही है
खारा पानी
हो समन्दर का
या आँख का
अथाह है
एक बहता नहीं
दूसरा बहता जाता है
बरसे बादल, भरे समन्दर
भरे मन, बरसे आँखें
कहीं भरना शुभ है, कहीं अशुभ है
बरसना बुरा कहीं, तो कहीं अच्छा है
शब्दावली के शब्दों का
अर्थ उलझता जाता है
ठण्ड-गर्मी आदि जो मौसम हैं
उचित अनुपात में ही रोचक हैं
बर्फ़ पड़े, बच्चे हर्षाए
बर्फ़ जमे, कारें अड़ जाए
उचित अनुपात ही जीवन दर्शन है
जीवन सुख-दुख का संतुलित मिश्रण है
कभी भरा है, कभी खला है
कभी भाया है, कभी खला है
10 दिसम्बर 2016
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