Sunday, March 19, 2023

मैं बूढ़ा हो रहा हूँ

मैं बूढ़ा हो रहा हूँ 

यह बताते हैं वो लोग जो

मेट्रो में मेरे लिए सीट छोड़ देते हैं 

परिजन जो मेरा सामान उठा लेते हैं 


और मैं हूँ कि

अपने बूढ़ेपन से अनभिज्ञ हूँ 

अभी भी थिएटर में पहले दिन पहला शो देखता हूँ 

दिन भर गाने सुनता हूँ 

फ़ोन से चिपका रहता हूँ 

सोशियल मीडिया पे पोस्ट करता हूँ 

आईसक्रीम बेहिसाब खाता हूँ 

टेबल टेनिस भी खेल लेता हूँ 

आठ किलोमीटर रोज़ चलता हूँ 


क्या बदला है पिछले तीस सालों में?

कुछ भी तो नहीं 


मेरे चेहरे पर झुर्रियाँ ज़रूर होँगी

मेरे सर पर बाल कम हो गए होंगे 

ये सब मुझे नहीं दिखते

अच्छा ही है हमारी आँखें हमें नहीं देख सकतीं

और आईना जो दिखाता है वो कौन याद रखता है?


राहुल उपाध्याय । 19 मार्च 2023 । सिएटल 



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2 comments:

Abhay jain said...

बूढ़े होने का दर्द बूढ़ा होने वाला ही समझ सकता है। दिल को छू लेने वाली रचना ।।आदरणीय ।

Abhay jain said...

आपका ब्लाग मेरे परम मित्र अखिल स्नेही के माध्यम से प्राप्त । सुंदर रचनाये आप दोनों का आभार ।।