समय बदलता रहता है और प्रश्न तने रहते हैं
हज़ारों पैगम्बरों के बाद भी प्रश्न बने रहते हैं
लाख प्रेम का पाठ पढ़ाईयें
लाख भाईचारे के नारे लगाईयें
फिर भी चिरकाल से आज तक
केन-एबल दुश्मन बने रहते हैं
समय बदलता …
हज़ार बार चाहे कृष्ण आए
हज़ार बार चाहे गीता समझाए
फिर भी अर्जुन पहले की तरह
रणभूमि में खिन्न बने रहते हैं
समय बदलता …
बुद्ध ने सब को राह दिखलाई
दु:ख की सब को जड़ बतलाई
फिर भी मोह माया के
रिश्तों आदि के बंधन बने रहते हैं
समय बदलता …
सिएटल,
30 जून 2008
==================================
केन-एबल = Cain and Abel
Monday, June 30, 2008
प्रश्न बने रहते हैं
Posted by Rahul Upadhyaya at 8:14 PM
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Sunday, June 29, 2008
चर्चिल
चर्चिल साहब ने भारत के बारे में एक बड़े पते की बात कही थी। उन्होनें कहा तो अंग्रेज़ी में था। लेकिन मैं यहाँ उनके कथन को हिंदी में अनुवाद कर रहा हूँ और थोड़ा दिलचस्प बनाने के लिए शब्दों से खिलवाड़ भी।
चर्चिल: भारत XगोY की XY है।
अब आप बताए कि XY क्या है? ये एक शब्द है दो अक्षरों का, लेकिन कौन सा?
उदाहरण – XरY में ज्यादातर लोग दाल-XY खाते हैं।
यहाँ XY = भात
Posted by Rahul Upadhyaya at 9:04 PM
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वापसी
देश छोड़ कर
विदेश आना
बहुत आसान था
सब की शुभकामनाएं जो मेरे साथ थी
माँ-बाप-भाई-बहन की दुआएं मेरे साथ थी
खुद की काबिलियत पर भरोसा था
हाथों में शक्ति और मन में हौसला था
स्वर्ग सा सुंदर लगता था स्टूडियो
जबकि मुड़ कर देखो तो महज घोंसला था
जहाँ रूकता था अच्छा लगता था
जो मिलता था अच्छा लगता था
जबकि न किसी को जानता था
न किसी को पहचानता था
देश छोड़ कर
विदेश आना
बहुत आसान था
आज वापस लौट कर
अपने ही घर जाना
बहुत मुश्किल है
वो मेरे परिचित
जिन्होंने मुझे शुभकामनाएं दी थी
आज उनकी आँखों में प्रश्न होगें
वो मेरे अपने
जिन्होंने मुझे दुआएं दी थी
आज उनके सपने दफ़्न होगें
बोतल से प्याले में
शराब उड़ेलना जितना आसान है
प्याले से बोतल में
डालना उतना ही मुश्किल है
बोतल खोलना
प्याले भरना
स्वाभाविक है
अपेक्षित है
एक जश्न है
वापस पलट देना
एक ऐसा प्रश्न है
जिसका उत्तर न कोई मांगता है
और न ही दिया जा सकता है
बहुत किया विचार विमर्ष
तब निकला ये निष्कर्ष
बहता है जीवन जैसे बहे रिवर्स
चले फ़ॉरवर्ड नहीं चले रिवर्स
जो बीत गया सो बीत गया
जो जीत गया सो जीत गया
जो पार गया सो पार गया
जो हार गया सो हार गया
देश छोड़ कर
विदेश आना
बहुत आसान था
आज वापस लौट कर
अपने ही घर जाना
बहुत मुश्किल है
सिएटल,
29 जून 2008
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दफ़्न = दफ़न, buried
स्वाभाविक = natural
अपेक्षित = expected
जश्न = celebration
निष्कर्ष = result
रिवर्स = rivers, reverse
Posted by Rahul Upadhyaya at 4:16 PM
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Friday, June 27, 2008
उसकी बातों में 'गर दम होता
उसकी बातों में 'गर दम होता
दर्द थोड़ा तो मेरा कम होता
न गीता है सच, न बाईबल है सच
झूठा संसार सभी रहे हैं रच
सच होता तो अलग न धरम होता
न मिलता है वो, न दिखता है वो
सरेआम मंदिरों में बिकता है वो
कहने को साथ वो हरदम होता
'गर होता तन्हा तो अच्छा होता
ख़ुद पर भरोसा तो पक्का होता
न होता वो और न उसका ग़म होता
पहेलीनुमा एक किस्सा है जीवन
अजीब-ओ-गरीब नाटक है जीवन
किरदार को आगे का नहीं इलम होता
सूत्रधार है वो और नायक हूँ मैं
सच पूछो तो एक खलनायक हूँ मैं
मेरे मरने पर ही खेल खतम होता
सिएटल,
27 जून 2008
==================================
'गर = अगर
किरदार = पात्र, character
इलम = इल्म, ज्ञात, जानकारी
पहेली 26 का हल
जैसे ही भारी-भरकम डॉक्टर ने हाथ में पहने XXXX (3.5)
डर के मारे कब्ज़ी मरीज को शुरू हो गए XXXX (2.5, 2)
इस पहेली की पहली पंक्ति का अंतिम शब्द खोजे, और उस शब्द के दो शब्द बनाए ताकि वे दूसरी पंक्ति के अंतिम दो शब्द बन जाए। लेकिन अक्षरों का क्रम न बदले। संधि विच्छेद हो सकता है।
जैसे कि - बनाई, बन आई
ध्यान रहे कि शब्द हिंग्लिश (Hinglish) भी हो सकते हैं। छोटी-बड़ी मात्रा के भेद पर गौर न करें।
कोष्ठक में हर शब्द के अक्षरों की संख्या दी गई है।
जैसे - पुरुस्कार (4.5) वर्ष (2.5) हाथापाई (4)
सहायता के लिए ये पाँच उदाहरण देखें। और बाकी अन्य पहेलियाँ भी।
पहेली 26 का हल - दस्ताने, दस्त आने
जैसे ही भारी-भरकम डॉक्टर ने हाथ में पहने दस्ताने
डर के मारे कब्ज़ी मरीज को शुरू हो गए दस्त आने
Posted by Rahul Upadhyaya at 2:44 PM
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Wednesday, June 25, 2008
ज़िंदगी हो multiple choice
ज़िंदगी हो पर प्यार न हो
जैसे जीत हो पर XXXX न हो
जैसे धन हो पर XXXX न हो
जैसे फूल हो पर XXXX न हो
जैसे पालकी हो पर XXXX न हो
जैसे नौकरी हो पर XXXX न हो
जैसे गैस हो पर XXXX न हो
ज़िंदगी हो और ज़ज़बात न हो
जैसे दीप हो और XXXX न हो
जैसे शब्द हो और XXXX न हो
जैसे बाजा हो और XXXX न हो
जैसे अंधेरा हो और XXXX न हो
ज़िंदगी हो और सुख न हो
जैसे एक्ज़ाम हो और XXXX न हो
जैसे टिफिन हो और XXXX न हो
जैसे किचन हो और XXXX न हो
ज़िंदगी हो और कोई संग न हो
जैसे रुप हो पर XXXX न हो
जैसे रूत हो पर XXXX न हो
जैसे होली हो पर XXXX न हो
जैसे लस्सी हो पर XXXX न हो
जैसे रात हो पर XXXX न हो
जैसे गीत हो पर XXXX न हो
सिएटल,
25 जून 2008
=======================
मोटे तौर पर सब की ज़िंदगी एक जैसी ही होती है। लेकिन सब का अपना अपना दृष्टिकोण होता है।
वैसे ही हर कविता एक सी लगती है। लेकिन उन में भी कवि अपनी छाप छोड़ ही देता है। शब्द वही होते हैं, बात भी वही होती है, लेकिन अंदाज़ अलग अलग।
कोई जावेद अक्ख़्तर तो कोई गुलज़ार।
जावेद साहब ने बहुत उम्दा गीत लिखा है - एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा जैसे …
वही गीत अगर गुलज़ार साहब लिखते तो कुछ और ही अंदाज़ होता,
एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा जैसे जलता सिगार
तो आप बेहिचक इस रचना पर अपना हाथ साफ़ करे और इसे अपना जामा पहनाए।
आप अपने शब्दों का योगदान दे कर इस रचना को पूर्ण करे.
Posted by Rahul Upadhyaya at 6:19 PM
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मुझ में वफ़ा हरगिज़ न थी
पर मैं ज़फ़ा कर ना सका
काश मुझे मिलती सजा
पर मैं ख़ता कर ना सका
तितली नवेली मिले यही सोच समझ कर
जिम मॉल मंदिर जाता रहा
शादी-ब्याह कर के भी शाम-ओ-सहर
मैं तांक-झांक करता रहा
किसी ने मुझे भाव ना दिया
मैं घपला कर ना सका
मैंने जिसे देखा उसे चाहा था मगर
कोई पास भी फ़टका नहीं
किसी ने न मुझसे कोई तोहफ़ा लिया
न किसी ने मुझको ख़त ही लिखा
किसी हूर पर दिल-ओ-जान को
मैं तो फ़िदा कर ना सका
सिएटल,
25 जून 2008
(आनंद बक्षी से क्षमायाचना सहित)
Posted by Rahul Upadhyaya at 1:52 PM
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पंचलाईन #2
जिस पर हाथ रखा जाता है उसे गीता कहते हैं
जिस पर दिल आ जाता है उसे प्यारी कहते हैं
जिस पर पाँव पड़ जाता है उसे सॉरी कहते हैं (12)
जो दांत दिखाता है उसे हंसमुख कहते हैं
जो दांत निकालता है उसे डेन्टिस्ट कहते हैं
जो दम निकाल देता है उसे दमा कहते हैं (13)
जो साल भर पढ़ता है उसे मग्गू कहते हैं
जो रात भर पढ़ता है उसे उल्लू कहते हैं
जो गाल पर पड़ता है उसे डिम्पल कहते हैं (14)
जो दुध देती है उसे दुधारी कहते हैं
जो दुध पिलाती है उसे महतारी कहते हैं
जो दुध में पानी मिलाती है उसे मदर डेरी कहते हैं (15)
जब उनका दिल कहता है तो दिला मुझे कहते हैं
जब मेरा मन कहता है तो मना मुझे कहते हैं
जो हम दोनों करते हैं उसे तक़रार कहते हैं (16)
जो हर वक़्त हिलते हैं उन्हें चंचल कहते हैं
जो पोखर में खिलते हैं उन्हें कमल कहते हैं
जो होटल में मिलते हैं उन्हे 'कपल' कहते हैं (17)
जो ज़मीन पर चलती है उसे गाड़ी कहते हैं
जो पानी पर चलती है उसे कश्ती कहते हैं
जिसकी हर जगह चलती है उसे पत्नी कहते हैं (18)
जो जज पहनते हैं उसे विग कहते हैं
जो रानी पहनती है उसे मुकुट कहते हैं
जो बकरे पहनते हैं उसे सेहरा कहते हैं (19)
जो हवा में उड़े उसे पतंग कहते हैं
जो सब से लड़े उसे दबंग कहते हैं
जो तुम्हारी याद दिलाए उसे पलंग कहते हैं (20)
सिएटल,
25 जून 2008
पंचलाईन #1 यहाँ है।
पहेली 26
जैसे ही भारी-भरकम डॉक्टर ने हाथ में पहने XXXX (3.5)
डर के मारे कब्ज़ी मरीज को शुरू हो गए XXXX (2.5, 2)
इस पहेली की पहली पंक्ति का अंतिम शब्द खोजे, और उस शब्द के दो शब्द बनाए ताकि वे दूसरी पंक्ति के अंतिम दो शब्द बन जाए। लेकिन अक्षरों का क्रम न बदले। संधि विच्छेद हो सकता है।
जैसे कि - बनाई, बन आई
ध्यान रहे कि शब्द हिंग्लिश (Hinglish) भी हो सकते हैं। छोटी-बड़ी मात्रा के भेद पर गौर न करें।
कोष्ठक में हर शब्द के अक्षरों की संख्या दी गई है।
जैसे - पुरुस्कार (4.5) वर्ष (2.5) हाथापाई (4)
सहायता के लिए ये पाँच उदाहरण देखें। और बाकी अन्य पहेलियाँ भी।
Posted by Rahul Upadhyaya at 10:28 AM
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पहेली 25 का हल
जिसने भी की XXXXX
जिल्लत ही उसके XXXXX
इस पहेली की पहली पंक्ति का अंतिम शब्द खोजे, और उस शब्द के तीन नए शब्द बनाए ताकि वे दूसरी पंक्ति के अंतिम तीन शब्द बन जाए। लेकिन अक्षरों का क्रम न बदले। संधि विच्छेद हो सकता है।
जैसे कि - बनाई, बन आई
ध्यान रहे कि शब्द हिंग्लिश (Hinglish) भी हो सकते हैं। छोटी-बड़ी मात्रा के भेद पर गौर न करें।
सहायता के लिए ये पाँच उदाहरण देखें। और बाकी अन्य पहेलियाँ भी।
पहेली 25 का हल - हाथापाई, हाथ आ पाई
जिसने भी की हाथापाई
जिल्लत ही उसके हाथ आ पाई
Posted by Rahul Upadhyaya at 10:27 AM
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Monday, June 23, 2008
सोना
"Did you sleep with her?"
"देखो, जैसा तुम सोच रही हो वैसा कुछ भी नहीं है।"
"Just say, Yes or No."
"हाँ।"
जी हाँ, यह वार्तालाप हो रहा है मेरी कान्वेंट पढ़ी-लिखी पत्नी का मेरे साथ। अक्सर यहीं देखा गया है कि कान्वेंट पढ़ी-लिखी कन्या यह देखकर शादी कर लेती है कि बंदा इंजीनियर है तो अंग्रेज़ी तो आती ही होगी। बाद में सर धुनती है कि बंदा तो हिंदी ऐसे बोलता है जैसे कि यू-पी का नेता। और रफ़ी-किशोर के रोते-धोते गाने सुनता है। और तो और, शेरो-शायरी की भी बीमारी लग जाती है।
जी हाँ, मैं कविता के साथ सो गया था। आप कहेगे कि ये तो बहुत पुराना पी-जे हैं। कोई नई बात करिएँ। कविता सुनते-सुनते या पढ़ते-पढ़ते हज़ारों आदमी रोज सोते हैं।
आप सही कह रहे हैं। मैं तो मंच पर भी अपने यार-दोस्तों की कविताए सुनते-सुनते उंघने लगता हूँ। बहुत बुरा लगता है और बाद में कवि दोस्त आड़े हाथ भी लेते हैं। अगली बार हम आपको साथ में ले कर नहीं आ रहे हैं। श्रोता तो सो सकता है, लेकिन मंच पर बैठने के भी अपने तौर-तरीके होते हैं। थोड़ी-थोड़ी देर में 'वाह', 'क्या बात है', 'अत्यंत अद्भुत', 'बहुत दर्द है', 'एक बार फिर से कहे', ये सब कहते रहना चाहिए। ताकि श्रोता को लगे कि वाकई बहुत अच्छी रचना थी, लेकिन हमें ही समझ नहीं आई। साथ ही लोगों का ये भी लगता है कि आपका कितना बड़ा दिल है कि दूसरों की रचनाएँ भी आपको अच्छी लगती है।
मैं नौसिखिया हूँ इस मामले में, फिर भी कोशिश करता हूँ कि कुछ नए वाह-वाही के जुमले याद कर के जाऊँ और थोड़ा सभ्य नज़र आउ। मगर आप ही बताए कि वही कविता आप कितनी बार सुन सकते हैं? कितनी बार उस पर ठहाका लगा सकते हैं? कितनी बार कह सकते हैं कि 'एक बार फिर से कहे।' लिहाजा, आँख लग ही जाती है।
जी हाँ, मैं सोया तो कविता के साथ ही था, लेकिन ये वो कविता नहीं है जिसके बारे में आप सोच रहे हैं। इस कविता का पूरा नाम है - कविता शर्मा। इतनी सुंदर कि मानो ऐश्वर्य राय बच्चन साक्षात। और ये रही होगी कोई 25-30 वर्ष की युवती। सही उम्र तो आप किसी की नहीं बता सकते। यहाँ तक की आप को अपनी पत्नी की जन्मतिथि भी ठीक से ज्ञात नहीं होती हैं। ध्यान दीजिएगा, मैं जन्मदिन याद रखने की बात नहीं कर रहा हूँ। याद तो तब रखा जाए, जब कोई आपको धोखे में न रखे और तिथि सही-सही बताए। जबकि शादी के वक़्त यह तिथि बहुत माइने रखती है। यहाँ तक कि घंटा-मिनट-स्थान तक ठीक तरह से दर्ज होना चाहिए, ताकि आपकी जन्मपत्री मिलाई जा सके। कितने गुण मिलते हैं? लड़का-लड़की मांगलिक है? आदि-आदि का निवारण तभी हो सकता है। लेकिन, शादी के कुछ वर्ष बाद पता चलता है कि 'एक्चुअली हुआ क्या था कि एडमिशन के वक़्त यह सोच कर कि आई-ए-एस के एक्ज़ाम के लिए एक और चांस मिल जाएगा, इसलिए उम्र कम बता दी थी।' साल ही नहीं, महीना भी बदल दिया था।
शादी के लिए जन्मपत्री तो सही समय वाली से ही बनवाई जाती होगी। लेकिन, अमेरिका में ग्रीन-कार्ड के वक़्त, डंके की चोट पर बक़ायदा स्टेम्प-पेपर पर सील के साथ दस्तखत कर दिए जाते हैं कि गलत जन्मतिथि ही सही जन्मतिथि है। कायदे-कानून-नियम बनाने वाले भी न जाने क्या सोचकर ऐसे कायदे-कानून बनाते हैं। उन्हें समझाने जाओ तो समझते ही नहीं। सो, हर कोई किसी न किसी तरह अपना ही अनूठा हल निकाल ही लेता है। सत्यमेव जयते।
अब इन कविता शर्मा की सिर्फ़ उम्र ही नहीं, मैं इनके बाकी हर परिचय से भी अपरिचित हूँ। यानि कि, क्या ये विवाहित है? बाल-बच्चे हैं? पति जीवित हैं? कहाँ रहती हैं? क्या काम करती हैं? आदि-आदि।
अब आप भी मुझ पर शक कर रहे हैं। कि न जान न पहचान और साथ में सो लिए। देखिए, मुझमें और आप में ज्यादा फ़र्क़ नहीं है। सोना सबको अच्छा लगता है। थके-हारे को भी। बच्चे को भी, बूढ़े को भी। और औरतों को तो दोनो अच्छे लगते हैं - बिस्तर पर सोना और अंग-अंग पर सोना।
कविता शर्मा और मैं भी कोई अलग तो हैं नहीं। उसे भी सोना था और मुझे भी सोना था। सो हम दोनों सो गए। पहले हम दोनो ने एक फ़िल्म देखी। फिर हम ने साथ साथ खाना खाया। फिर थोड़ी देर इधर-उधर की बाते की, जिनका न कोई सर था न पैर। थोड़ी देर क्रासवर्ड किया, कॉफ़ी पी, और फिर सुडोकू भी किया। थोड़ी देर बाद हम दोनो सो गए।
अब सोने में क्या बुराई है? फ़िल्म देखने में क्या बुराई है? साथ खाना खाने में क्या बुराई है? क्रासवर्ड, सुडोकू में क्या बुराई है?
इन सब को आमतौर पर समाज में बुरी निगाहों से नहीं देखा जाता है। लेकिन एक अकेला आदमी, एक अकेली औरत को अपने साथ फिल्म दिखाने नहीं ले जा सकता। जब तक कि उनके वैध या अवैध सम्बंध ने हो। या फिर सम्बंध स्थापित होने वाले हो। जैसे कि उनकी शादी की बात चल रही हो तो ये सुझाव दिया जाता है कि तुम दोनो कोई फ़िल्म देख कर आओ। एक दूसरे को जान लो ठीक तरह से। मेरे हिसाब से किसी को इस विषय पर एक किताब लिखनी चाहिए। ताकि बिचारा लड़का यह तय कर सके कि कौन सी फ़िल्म दिखाई जाए - संजय भंसाली की? या करण जौहर की? राजश्री की या यश चोपड़ा की? शाह रुख खान की या सलमान खान की? संजय दत्त की या आमिर खान की?
टिकट तो ज़ाहिर है, सब से महंगी श्रेणी के ही लिए जाएगे। लेकिन फ़िल्म के दौरान कैसे पेश आया जाए? बिलकुल शांत या ठहाके लगाते हुए? ईंटरवल में क्या खिलाया-पिलाया जाए? ठंडा या कॉफ़ी? समोसा या आईस-क्रीम? फ़िल्म के बाद फ़िल्म पर कोई टिप्पणी की जाए या फिर चांद सितारों की बातें की जाए।
एक किताब आवश्यक है। खैर, किताब को छोड़े। हम बात कर रहे थे कविता की। कविता शर्मा की। और उनके साथ सोने की। जैसा कि मैंने कहा, साथ साथ फ़िल्म देखना, साथ-साथ खाना खाना, साथ-साथ क्रासवर्ड करना, साथ-साथ सुडोकू करना, साथ-साथ रात को कॉफ़ी पीना, सब के सब एक असम्बंधित आदमी और औरत के बीच वर्जित हैं। लेकिन कोई पत्नी ये नहीं पूछती हैं कि
Did you eat with her?
Did you do crossword with her?
Did you go to movies with her?
Did you joke with her?
जी नहीं। हर पत्नी का चिर-परिचित प्रश्न है -
"Did you sleep with her?"
और इस सवाल का प्राय: जवाब यही होता है
"देखो, जैसा तुम सोच रही हो वैसा कुछ भी नहीं है।"
और फिर
"Just say, Yes or No."
तो मैंने सच सच कह दिया, "हाँ।"
अब हर एक की किस्मत तो मेरे जैसी होती नहीं हैं। 100 में से 99 वें पति इस वक़्त अपना गाल आगे कर देते हैं और पत्नी एक जोर का थप्पड़ रसीद कर देती हैं। लेकिन मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ।
मेरी ऐसी खुशकिस्मती कहाँ? कविता शर्मा और मैं रात भर साथ थे लेकिन हमारे बीच कम्बख्त 747 का एक आर्मरेस्ट था।
सिएटल,
24 जून 2008
Posted by Rahul Upadhyaya at 3:30 PM
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Friday, June 20, 2008
बिचारा हिंदू
हर दिन हर एक हिंदू पर
ग्रहों की पड़ती मार है
शनि से लेकर शुक्र तक
हर दिन होता वार है
शांतिप्रिय जनता है लेकिन
शांतिप्रिय नहीं भगवान है
किसी के हाथ में है गदा
तो किसी के हाथ तलवार है
राम मिले थे रावण से
कृष्ण मिले थे कंस से
हम जैसे छुटभईयों का
नहीं दर्शन पर अधिकार है
गलती करते हैं सभी
इंसान भी भगवान भी
गलती हो जाती है जब
वो ले लेते अवतार हैं
राम राम रटता रहूँ
दु:ख मेरे हो जाए दूर
कृष्ण जी गीता में ये
कहते नहीं एक बार हैं
न वेद में न पुराण में
हिंदू का नहीं नाम है
दूसरों ने जो दिया
कर लेता स्वीकार है
मंदिरों की भीड़ में
इंसान खोता जा रहा
पांडित्य और पाखंड का
फ़ैल रहा बाज़ार है
उलटे-सीधे ये रीत-रिवाज
'राहुल' समझ पाता नहीं
इसकी गवाही दे रहे
ये उलटे-सीधे अशआर हैं
सिएटल,
20 जून 2008
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अशआर - एक से ज्यादा शेर, शेर का बहुवचन
शेर = उर्दू आदि की कविता के दो चरणों का समूह
Wednesday, June 18, 2008
बदलते ज़माने के बदलते ढंग हैं मेरे
बदलते ज़माने के बदलते ढंग हैं मेरे
नए हैं तेवर और नए ही रंग हैं मेरे
शुद्ध भाषा के शीशमहल में न कैद रख सकोगे मुझको
मैं तुम्हे आगाह कर देता हूँ कि संग संग हैं मेरे
ये तेरी-मेरी भाषा का साम्प्रदायिक तर्क तर्क दो
जैसे सुंदर हैं तुम्हारे वैसे ही सुंदर अंग हैं मेरे
कहीं संकीर्णता का जंग खोखला न कर दे साहित्य को
इसलिए हर महफ़िल में छिड़ते हैं हर रोज़ जंग मेरे
संस्कृत से है माँ का रिश्ता और उर्दू बहन है मेरी
खिलाती-पिलाती है अंग्रेज़ी और बॉस फ़िरंग हैं मेरे
माँ-बहन को एक करना चाहता है 'राहुल'
नासमझ समझेंगे कि ये नए हुड़दंग हैं मेरे
सिएटल,
18 जून 2008
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संग (उर्दू) - stone
संग (हिंदी) - with
तर्क (उर्दू) - abandon
तर्क (हिंदी) - arguments
जंग (उर्दू) - war
जंग (हिंदी) - rust
Posted by Rahul Upadhyaya at 12:30 PM
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Tuesday, June 17, 2008
पहेली 25
जिसने भी की XXXXX
जिल्लत ही उसके XXXXX
इस पहेली की पहली पंक्ति का अंतिम शब्द खोजे, और उस शब्द के तीन नए शब्द बनाए ताकि वे दूसरी पंक्ति के अंतिम तीन शब्द बन जाए। लेकिन अक्षरों का क्रम न बदले। संधि विच्छेद हो सकता है।
जैसे कि - बनाई, बन आई
ध्यान रहे कि शब्द हिंग्लिश (Hinglish) भी हो सकते हैं। छोटी-बड़ी मात्रा के भेद पर गौर न करें।
सहायता के लिए ये पाँच उदाहरण देखें। और बाकी अन्य पहेलियाँ भी।
Posted by Rahul Upadhyaya at 12:58 PM
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पहेली 24 का हल
हम जब भी XXXXX
वो समझे कि XXXXX
इस पहेली की पहली पंक्ति के अंतिम दो शब्द खोजे, और उन दो शब्दों के दो नए शब्द बनाए ताकि वे दूसरी पंक्ति के अंतिम दो शब्द बन जाए। लेकिन अक्षरों का क्रम न बदले।
जैसे कि - जाप हर, जा पहर
ध्यान रहे कि शब्द हिंग्लिश (Hinglish) भी हो सकते हैं। छोटी-बड़ी मात्रा के भेद पर गौर न करें।
सहायता के लिए ये पाँच उदाहरण देखें। और बाकी अन्य पहेलियाँ भी।
पहेली 24 का हल - जो कहे, जोक है
हम जब भी जो कहे
वो समझे कि जोक है
Posted by Rahul Upadhyaya at 12:57 PM
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Monday, June 16, 2008
पहेली 24
हम जब भी XXXXX
वो समझे कि XXXXX
इस पहेली की पहली पंक्ति के अंतिम दो शब्द खोजे, और उन दो शब्दों के दो नए शब्द बनाए ताकि वे दूसरी पंक्ति के अंतिम दो शब्द बन जाए। लेकिन अक्षरों का क्रम न बदले।
जैसे कि - जाप हर, जा पहर
ध्यान रहे कि शब्द हिंग्लिश (Hinglish) भी हो सकते हैं। छोटी-बड़ी मात्रा के भेद पर गौर न करें।
सहायता के लिए ये पाँच उदाहरण देखें। और बाकी अन्य पहेलियाँ भी।
Posted by Rahul Upadhyaya at 11:14 AM
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पहेली 23 का हल
समाज में आदर्श की XXXX
पैदा किये हैं लाखों XXXX
इस पहेली की पहली पंक्ति के अंतिम शब्द को खोजे, और उस शब्द के दो टुकड़े ऐसे करे कि वे दूसरी पंक्ति के अंतिम शब्द बन जाए।
या फ़िर दूसरी पंक्ति के अंतिम शब्द को खोजे, और उस शब्द के दो टुकड़े ऐसे करे कि वे पहली पंक्ति के अंतिम शब्द बन जाए।
ध्यान रहे कि शब्द हिंग्लिश (Hinglish) भी हो सकते हैं। छोटी-बड़ी मात्रा के भेद पर गौर न करें।
सहायता के लिए ये पाँच उदाहरण देखें। उदाहरण में हर हल का पहला शब्द तीन अक्षर का है। लेकिन यह मात्र संयोग है। इस पहेली का यह नियम नहीं है। और कितने X हैं, यह अक्षरों की संख्या का संकेत भी नहीं है।
उदाहरण:
1 -
जब तक देखा नहीं XXXXXX
अपनी खामियाँ नज़र XXX XXX
हल - आईना, आई ना
जब तक देखा नहीं आईना
अपनी खामियाँ नज़र आई ना
2 -
हे हनुमान, राम, XXXXXX
रक्षा करो मेरी XXX XXX
हल - जानकी, जान की
हे हनुमान, राम, जानकी
रक्षा करो मेरी जान की
3 -
पूरी करो मेरी XXXXXX
खुले लॉटरी करूँ XXX XXX
हल - कामना, काम ना
पूरी करो मेरी कामना
खुले लॉटरी करूँ काम ना
4 -
जिन्होने भी मिलियंस XXXXXX हैं
मुसीबतों में नज़र XXX XXX हैं
हल - कमाए, कम आए
जिन्होने भी मिलियंस कमाए हैं
मुसीबतों में नज़र कम आए हैं
5 -
भूखे हैं तेरे XXXXXX
भूखों को तू XXX XXX
हल - बंदे, 'बन' दे
भूखे हैं तेरे बंदे
भूखों को तू 'बन' दे
पहेली 23 का हल - कमीने, कमीं ने
समाज में आदर्श की कमी ने
पैदा किये हैं लाखों कमीनें
Posted by Rahul Upadhyaya at 10:59 AM
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Friday, June 13, 2008
खाली-पीली
मीठे रस वाली
अंगूर की डाली
बड़े जतन से
बोतल में डाली
आधी पी ली
आधी खाली
जितनी पी ली
उतनी खाली
मैंने तो बस पी थी खाली
बाकी की ये किसने खा ली?
ये कहाँ की मुसीबत मैंने पाली
क्या कहा?
नहीं नहीं
मैं हिंदी भाषी हूँ, न मैं नेपाली
भाषा की पोल
देते हैं हम खोल
समझ ना इसे
उड़ाना मखौल
सेन फ़्रांसिस्को,
2001
जो दबता है उसी को दुनिया दबाती है
जो दबता है उसी को दुनिया दबाती है बदली भी सूरज नहीं बस चाँद छुपाती है हसरत है उनकी कि मैं तारें तोड़ लाऊँ और उंगलियाँ मेरी बस चाँद छू पाती हैं धरती है कि बेधड़क घूमती ही जा रही है और फूंक-फूंक के दुनिया कदम बढ़ाती है सुना है कि उम्र के साथ आँखें हो जाती है कमज़ोर तो फिर बचपन और बुढ़ापे में क्यों एक सा रूलाती हैं लड़खड़ाता हूँ मैं मुझे नहीं मिलता सहारा मरने वालो को दुनिया कंधों पे उठाती है सोचता हूँ रोज़ अब और हाथ नहीं मैं मैलें करूँगा लेकिन ज़रुरतों की नई-नई फ़सल रोज उग आती है कहने को तो वैसे बहुत कुछ है 'राहुल' लेकिन वो माँ कहाँ जो लोरी सुनाती है सिएटल, 13 जून 2008
Posted by Rahul Upadhyaya at 11:02 AM
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Thursday, June 12, 2008
पहेली 23
समाज में आदर्श की XXXX
पैदा किये हैं लाखों XXXX
इस पहेली की पहली पंक्ति के अंतिम शब्द को खोजे, और उस शब्द के दो टुकड़े ऐसे करे कि वे दूसरी पंक्ति के अंतिम शब्द बन जाए।
या फ़िर दूसरी पंक्ति के अंतिम शब्द को खोजे, और उस शब्द के दो टुकड़े ऐसे करे कि वे पहली पंक्ति के अंतिम शब्द बन जाए।
ध्यान रहे कि शब्द हिंग्लिश (Hinglish) भी हो सकते हैं। छोटी-बड़ी मात्रा के भेद पर गौर न करें।
सहायता के लिए ये पाँच उदाहरण देखें।
Posted by Rahul Upadhyaya at 9:43 AM
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पहेली 22 का हल
मैं हूँ, मंडप है, और तुम्हारी मांग में XXX है
हे प्रिये, कुछ तो समझाओ क्यूँ ये सुहाना XXX है
इस पहेली की पहली पंक्ति के अंतिम शब्द को खोजे, और उस शब्द के दो टुकड़े ऐसे करे कि वे दूसरी पंक्ति के अंतिम शब्द बन जाए।
या फ़िर दूसरी पंक्ति के अंतिम शब्द को खोजे, और उस शब्द के दो टुकड़े ऐसे करे कि वे पहली पंक्ति के अंतिम शब्द बन जाए।
ध्यान रहे कि शब्द हिंग्लिश (Hinglish) भी हो सकते हैं। छोटी-बड़ी मात्रा के भेद पर गौर न करें।
सहायता के लिए ये पाँच उदाहरण देखें। उदाहरण में हर हल का पहला शब्द तीन अक्षर का है। लेकिन यह मात्र संयोग है। इस पहेली का यह नियम नहीं है। और कितने X हैं, यह अक्षरों की संख्या का संकेत भी नहीं है।
उदाहरण:
1 -
जब तक देखा नहीं XXXXXX
अपनी खामियाँ नज़र XXX XXX
हल - आईना, आई ना
जब तक देखा नहीं आईना
अपनी खामियाँ नज़र आई ना
2 -
हे हनुमान, राम, XXXXXX
रक्षा करो मेरी XXX XXX
हल - जानकी, जान की
हे हनुमान, राम, जानकी
रक्षा करो मेरी जान की
3 -
पूरी करो मेरी XXXXXX
खुले लॉटरी करूँ XXX XXX
हल - कामना, काम ना
पूरी करो मेरी कामना
खुले लॉटरी करूँ काम ना
4 -
जिन्होने भी मिलियंस XXXXXX हैं
मुसीबतों में नज़र XXX XXX हैं
हल - कमाए, कम आए
जिन्होने भी मिलियंस कमाए हैं
मुसीबतों में नज़र कम आए हैं
5 -
भूखे हैं तेरे XXXXXX
भूखों को तू XXX XXX
हल - बंदे, 'बन' दे
भूखे हैं तेरे बंदे
भूखों को तू 'बन' दे
पहेली 22 का हल - सिंदूर, 'सीन' दूर
मैं हूँ, मंडप है, और तुम्हारी मांग में सिंदूर है
हे प्रिये, कुछ तो समझाओ क्यूँ ये सुहाना 'सीन' दूर है
सीन = scene, दृश्य
Posted by Rahul Upadhyaya at 9:40 AM
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Wednesday, June 11, 2008
पहेली 22
मैं हूँ, मंडप है, और तुम्हारी मांग में XXX है
हे प्रिये, कुछ तो समझाओ क्यूँ ये सुहाना XXX है
इस पहेली की पहली पंक्ति के अंतिम शब्द को खोजे, और उस शब्द के दो टुकड़े ऐसे करे कि वे दूसरी पंक्ति के अंतिम शब्द बन जाए।
या फ़िर दूसरी पंक्ति के अंतिम शब्द को खोजे, और उस शब्द के दो टुकड़े ऐसे करे कि वे पहली पंक्ति के अंतिम शब्द बन जाए।
ध्यान रहे कि शब्द हिंग्लिश (Hinglish) भी हो सकते हैं। छोटी-बड़ी मात्रा के भेद पर गौर न करें।
सहायता के लिए ये पाँच उदाहरण देखें। उदाहरण में हर हल का पहला शब्द तीन अक्षर का है। लेकिन यह मात्र संयोग है। इस पहेली का यह नियम नहीं है। और कितने X हैं, यह अक्षरों की संख्या का संकेत भी नहीं है।
उदाहरण:
1 -
जब तक देखा नहीं XXXXXX
अपनी खामियाँ नज़र XXX XXX
हल - आईना, आई ना
जब तक देखा नहीं आईना
अपनी खामियाँ नज़र आई ना
2 -
हे हनुमान, राम, XXXXXX
रक्षा करो मेरी XXX XXX
हल - जानकी, जान की
हे हनुमान, राम, जानकी
रक्षा करो मेरी जान की
3 -
पूरी करो मेरी XXXXXX
खुले लॉटरी करूँ XXX XXX
हल - कामना, काम ना
पूरी करो मेरी कामना
खुले लॉटरी करूँ काम ना
4 -
जिन्होने भी मिलियंस XXXXXX हैं
मुसीबतों में नज़र XXX XXX हैं
हल - कमाए, कम आए
जिन्होने भी मिलियंस कमाए हैं
मुसीबतों में नज़र कम आए हैं
5 -
भूखे हैं तेरे XXXXXX
भूखों को तू XXX XXX
हल - बंदे, 'बन' दे
भूखे हैं तेरे बंदे
भूखों को तू 'बन' दे
Posted by Rahul Upadhyaya at 10:55 AM
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पहेली 21 का हल
बंद हो गया नहाते नहाते XXXXXX
जब मुझे मिला पानी XXX XXX
इस पहेली की पहली पंक्ति के अंतिम शब्द को खोजे, और उस शब्द के दो टुकड़े ऐसे करे कि वे दूसरी पंक्ति के अंतिम शब्द बन जाए।
सहायता के लिए ये तीन उदाहरण देखें। उदाहरण में हर हल का पहला शब्द तीन अक्षर का है। लेकिन यह मात्र संयोग है। इस पहेली का यह नियम नहीं है। और कितने X हैं, यह अक्षरों की संख्या का संकेत भी नहीं है।
उदाहरण:
1 -
जब तक देखा नहीं XXXXXX
अपनी खामियाँ नज़र XXX XXX
हल - आईना, आई ना
जब तक देखा नहीं आईना
अपनी खामियाँ नज़र आई ना
2 -
हे हनुमान, राम, XXXXXX
रक्षा करो मेरी XXX XXX
हल - जानकी, जान की
हे हनुमान, राम, जानकी
रक्षा करो मेरी जान की
3 -
पूरी करो मेरी XXXXXX
खुले लॉटरी करूँ XXX XXX
हल - कामना, काम ना
पूरी करो मेरी कामना
खुले लॉटरी करूँ काम ना
पहेली 21 का हल - गुनगुनाना, गुनगुना ना
बंद हो गया नहाते नहाते गुनगुनाना
जब मुझे मिला पानी गुनगुना ना
Posted by Rahul Upadhyaya at 10:11 AM
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Tuesday, June 10, 2008
पंचलाईन
जो राज करता है उसे राजा कहते हैं
जो राज करती है उसे रानी कहते हैं
जो नाराज करती है उसे नारी कहते हैं
जो तुरंत समझ में आ जाए उसे चुटकला कहते हैं
जो कल समझ में आएगी उसे कला कहते हैं
जो कभी समझ न आए उसे कविता कहते हैं
गज़ल के पहले शेर को मतला कहते हैं
गज़ल के आखरी शेर को मक़ता कहते हैं
जो गज़ेल को खा जाता है उसे शेर कहते हैं
जो वर्ष में एक बार होती है उसे वार्षिक कहते हैं
जो महीने में एक बार होती है उसे मासिक कहते हैं
जो सिएटल में बार बार होती है उसे वर्षा कहते है
जो देस में रहता है उसे देसी कहते हैं
जो विदेश में रहता है उसे विदेशी कहते हैं
जो ख़ुद में रहता है उसे ख़ुदा कहते हैं
जो भीख मांगता है उसे भिखारी कहते हैं
जो पूजा करता है उसे पुजारी कहते हैं
जो बीमा करता है उसे बीमारी कहते हैं
जो रंग जाता है उसे रंगा कहते हैं
जो टंग जाता है उसे टंगा कहते हैं
जो हमें दंग कर दे उसे दंगा कहते हैं
जिसके पंख होते हैं उसे पंखा कहते हैं
जिसमें गंद होती है उसे गंदा कहते हैं
जिसे चंद लोग देते हैं उसे चंदा कहते हैं
जो भाग जाता है उसे भागा कहते हैं
जो जाग जाता है उसे जागा कहते हैं
जो सब की दाद पाता है उसे दादा कहते हैं
जो खुल जाता है उसे खुला कहते हैं
जो बंध जाता है उसे बंधा कहते हैं
जिसका दिमाग बंद हो जाता है उसे बंदा कहते हैं
फल पेड़ पर फलते हैं
मुर्दें चिता पर जलते हैं
जो चिंता से परे हैं उनसे सब जलते हैं
सिएटल,
10 जून 2008
=================================
गज़ेल = gazelle
Posted by Rahul Upadhyaya at 12:54 PM
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पहेली 21
बंद हो गया नहाते नहाते XXXXXX
जब मुझे मिला पानी XXX XXX
इस पहेली की पहली पंक्ति के अंतिम शब्द को खोजे, और उस शब्द के दो टुकड़े ऐसे करे कि वे दूसरी पंक्ति के अंतिम शब्द बन जाए।
सहायता के लिए ये तीन उदाहरण देखें। उदाहरण में हर हल का पहला शब्द तीन अक्षर का है। लेकिन यह मात्र संयोग है। इस पहेली का यह नियम नहीं है। और कितने X हैं, यह अक्षरों की संख्या का संकेत भी नहीं है।
उदाहरण:
1 -
जब तक देखा नहीं XXXXXX
अपनी खामियाँ नज़र XXX XXX
हल - आईना, आई ना
जब तक देखा नहीं आईना
अपनी खामियाँ नज़र आई ना
2 -
हे हनुमान, राम, XXXXXX
रक्षा करो मेरी XXX XXX
हल - जानकी, जान की
हे हनुमान, राम, जानकी
रक्षा करो मेरी जान की
3 -
पूरी करो मेरी XXXXXX
खुले लॉटरी करूँ XXX XXX
हल - कामना, काम ना
पूरी करो मेरी कामना
खुले लॉटरी करूँ काम ना
Posted by Rahul Upadhyaya at 10:52 AM
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पहेली 20 का हल
जब भी इम्तहान का निकला XXXXXX
चाहा, आऊँ अव्वल, न दूजा, XXX XXX
इस पहेली की पहली पंक्ति के अंतिम शब्द को खोजे, और उस शब्द के दो टुकड़े ऐसे करे कि वे दूसरी पंक्ति के अंतिम शब्द बन जाए।
सहायता के लिए ये तीन उदाहरण देखें। उदाहरण में हर हल का पहला शब्द तीन अक्षर का है। लेकिन यह मात्र संयोग है। इस पहेली का यह नियम नहीं है। और कितने X हैं, यह अक्षरों की संख्या का संकेत भी नहीं है।
उदाहरण:
1 -
जब तक देखा नहीं XXXXXX
अपनी खामियाँ नज़र XXX XXX
हल - आईना, आई ना
जब तक देखा नहीं आईना
अपनी खामियाँ नज़र आई ना
2 -
हे हनुमान, राम, XXXXXX
रक्षा करो मेरी XXX XXX
हल - जानकी, जान की
हे हनुमान, राम, जानकी
रक्षा करो मेरी जान की
3 -
पूरी करो मेरी XXXXXX
खुले लॉटरी करूँ XXX XXX
हल - कामना, काम ना
पूरी करो मेरी कामना
खुले लॉटरी करूँ काम ना
पहेली 20 का हल: नतीजा, न तीजा
जब भी इम्तहान का निकला नतीजा
चाहा, आऊँ अव्वल, न दूजा, न तीजा
Posted by Rahul Upadhyaya at 10:44 AM
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Monday, June 9, 2008
पहेली 20
जब भी इम्तहान का निकला XXXXXX
चाहा, आऊँ अव्वल, न दूजा, XXX XXX
इस पहेली की पहली पंक्ति के अंतिम शब्द को खोजे, और उस शब्द के दो टुकड़े ऐसे करे कि वे दूसरी पंक्ति के अंतिम शब्द बन जाए।
सहायता के लिए ये तीन उदाहरण देखें। उदाहरण में हर हल का पहला शब्द तीन अक्षर का है। लेकिन यह मात्र संयोग है। इस पहेली का यह नियम नहीं है। और कितने X हैं, यह अक्षरों की संख्या का संकेत भी नहीं है।
Posted by Rahul Upadhyaya at 10:30 AM
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Sunday, June 8, 2008
पहेली 19 का हल
शक्तिशाली है अमेरिका, ये देश नहीं XXXXXX
शांति स्थापित करने के लिए हमेशा XXX XXX
इस पहेली की पहली पंक्ति के अंतिम शब्द को खोजे, और उस शब्द के दो टुकड़े ऐसे करे कि वे दूसरी पंक्ति के अंतिम शब्द बन जाए।
सहायता के लिए ये तीन उदाहरण देखें। उदाहरण में हर हल का पहला शब्द तीन अक्षर का है। लेकिन यह मात्र संयोग है। इस पहेली का यह नियम नहीं है। और कितने X हैं, यह अक्षरों की संख्या का संकेत भी नहीं है।
उदाहरण:
1 -
जब तक देखा नहीं XXXXXX
अपनी खामियाँ नज़र XXX XXX
हल - आईना, आई ना
जब तक देखा नहीं आईना
अपनी खामियाँ नज़र आई ना
2 -
हे हनुमान, राम, XXXXXX
रक्षा करो मेरी XXX XXX
हल - जानकी, जान की
हे हनुमान, राम, जानकी
रक्षा करो मेरी जान की
3 -
पूरी करो मेरी XXXXXX
खुले लॉटरी करूँ XXX XXX
हल - कामना, काम ना
पूरी करो मेरी कामना
खुले लॉटरी करूँ काम ना
पहेली 19 का हल: साधारण, साधा रण
शक्तिशाली है अमेरिका, ये देश नहीं साधारण
शांति स्थापित करने के लिए हमेशा साधा रण
Posted by Rahul Upadhyaya at 6:31 AM
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Labels: riddles_solved
Friday, June 6, 2008
प्यार और वफ़ा
वफ़ा का प्यार से
कुछ लेना-देना नहीं है
जो यह समझ लेते हैं
वे खुश रहते हैं
जो नहीं समझ पाते हैं
उन्हें शादीशुदा कहते हैं
प्यार का मतलब है
आँखों में चमक
होठों पर मुस्कान
आवाज़ में नमी
सांसों में गर्मी
वफ़ादारी?
वफ़ादारी
एक चौकीदार पर
एक कर्मचारी पर
फ़बती है
और उन्हें ही
शोभा देती है
प्यार किया नहीं जाता
प्यार हो जाता है
वफ़ा होती नहीं है
वफ़ा की जाती है
प्यार ढाई अक्षर का मंत्र है
जिसे समझाने में
महारथियों ने लिख डाले कई ग्रंथ है
प्यार कुछ यादगार पल हैं
जिन्हें सम्हालते हम हर पल है
वफ़ा एक शर्त है
शिकायत की जड़ है
प्यार एक अहसास है
जिसका न सर है न धड़ है
प्यार से बड़कर कोई शक्ति नहीं
प्यार के बल पर ही प्रेमी उठाते हैं बीड़ा
प्यार से मीठी कोई धुन नहीं
प्यार से ही मन की बजती है वीणा
प्यार में है आनंद
प्यार में है पीड़ा
जिसमें नाचती है राधा
और तड़पती है मीरा
और वफ़ादारी?
मिलती है वफ़ादारी की
कुछ ऐसी मिसाल
कि एक पालतू प्राणी
हो गया मालिक पर निहाल
कि एक राजा ने कर दिया
मंत्री को मालामाल
वफ़ा को प्यार के साथ जोइना
प्यार की तौहीन है
वफ़ा का प्यार से
कुछ लेना-देना नहीं है
जो यह समझ लेते हैं
वे खुश रहते हैं
जो नहीं समझ पाते हैं
उन्हें शादीशुदा कहते हैं
सिएटल,
6 जून 2008
Posted by Rahul Upadhyaya at 3:58 PM
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Labels: relationship, valentine
पहेली 19
शक्तिशाली है अमेरिका, ये देश नहीं XXXXXX
शांति स्थापित करने के लिए हमेशा XXX XXX
इस पहेली की पहली पंक्ति के अंतिम शब्द को खोजे, और उस शब्द के दो टुकड़े ऐसे करे कि वे दूसरी पंक्ति के अंतिम शब्द बन जाए।
सहायता के लिए ये तीन उदाहरण देखें। उदाहरण में हर हल का पहला शब्द तीन अक्षर का है। लेकिन यह मात्र संयोग है। इस पहेली का यह नियम नहीं है। और कितने X हैं, यह अक्षरों की संख्या का संकेत भी नहीं है।
उदाहरण:
1 -
जब तक देखा नहीं XXXXXX
अपनी खामियाँ नज़र XXX XXX
हल - आईना, आई ना
जब तक देखा नहीं आईना
अपनी खामियाँ नज़र आई ना
2 -
हे हनुमान, राम, XXXXXX
रक्षा करो मेरी XXX XXX
हल - जानकी, जान की
हे हनुमान, राम, जानकी
रक्षा करो मेरी जान की
3 -
पूरी करो मेरी XXXXXX
खुले लॉटरी करूँ XXX XXX
हल - कामना, काम ना
पूरी करो मेरी कामना
खुले लॉटरी करूँ काम ना
Posted by Rahul Upadhyaya at 10:57 AM
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Thursday, June 5, 2008
ओबामा-क्लिंटन टिकट
मेरी भीगी-भीगी सी, पलकों पे रह गए
जैसे मेरे सपने बिखर के
जले मन तेरा भी, बूढ़े इस मैकेन से
हिलेरी, तू भी तरसे
मेरी भीगी ...
तुझे ही हरा के,
तुझे ही मिटा के
क्यूँ मैंने टिकट पे लगाया?
क्यूँ वोट देने के बदले
अमरीका ने
मुझको अंगूठा दिखलाया?
भूले नहीं प्राईमरी की बातें
वोटर अमरीका भर के
जले मन तेरा ...
आग से नाता, नारी से रिश्ता
काहे मन समझ न पाया
मुझे क्या हुआ था, इक बेवफ़ा की
पत्नी को पार्टनर बनाया
मेरी बेवकूफ़ी पे, हँसे जग सारा
गली-गली गुज़रे जिधर से
जले मन तेरा ...
सिएटल,
5 जून 2008
(मजरुह से क्षमायाचना सहित)
==================================
मैकेन = John McCain
हिलेरी = Hillary Clinton
प्राईमरी = Primary
Posted by Rahul Upadhyaya at 11:05 AM
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Labels: Majrooh, news, Obama, parodies, US Elections
Wednesday, June 4, 2008
H4 की पीड़ा
तेरे एच-वन में
बंध के सड़ गया
जो लिखा था
जो पढ़ा था चूल्हे की
भेंट चढ़ गया
इक ग्रीन-कार्ड का वादा दे कर
किया घर से दूर
माँ-बहन से और वतन से
किया सब से दूर
छूट गए दोस्त सारे
सब बिछड़ गया
मेरा जीवन …
फ़टेहाल है तू फ़टीचर
मेरा न कुछ भी यहाँ
यूज़ड कार है यूज़ड फ़र्नीचर
नया न कुछ भी यहाँ
भगवान जाने किस कंजूस से
पाला पड़ गया
मेरा जीवन …
मन के अंदर थी उमंगें
मन में ही रह गई
पर कटी एक चिड़िया जैसी
घर में ही रह गई
हो गई संतान जल्दी
सब बिगड़ गया
मेरा जीवन …
सिएटल,
4 जून 2008
(एम जी हशमत से क्षमायाचना सहित)
=================================
H-4 = H-4 Visa for the spouse of H-1 Visa holders
एच-वन = H-1 non-immigrant visa to work in US
यूज़ड कार = Used car; second hand car
यूज़ड फ़र्नीचर = Used furniture bought through garage sale or moving sale
Posted by Rahul Upadhyaya at 6:20 PM
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Labels: M G Hashmat, nri, parodies
मेरी कविता
मेरी कविता में बसती है बस मेरी भावना
विनती है कि भावना का लगे भाव ना
सब पढ़ते हैं सुनते हैं पर समझते हैं वो
मात्र मात्रा की गलती पर जो खाते ताव ना
मेरा ही लहू हो और मेरी ही कलम
किसी और का कुछ लगे दाँव ना
जो पहले से हैं वही कुरेदें हैं मैंने
नए सिरे से मैंने किये घाव ना
कलम टेढ़ी न हो तो मैं लिख पाता नहीं
सीधी पतवार से तो माझी खेतें नाव ना
धूप से है जीवन और धूप से है विकास
छालों के डर से मुसाफ़िर मांगे छाँव ना
आज़ादी का मतलब मैं समझ पाया नहीं
लीक से हट कर जब तक रखें पाँव ना
बधाई मिले और ज़माना पूजता रहे
इस तरह की राहुल रखे चाव ना
सिएटल
3 जून 2008
Posted by Rahul Upadhyaya at 6:13 PM
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Labels: bio, Why do I write?, world of poetry
Tuesday, June 3, 2008
मेरी कविता और आपके शब्द
मेरी कविता में बसती है बस मेरी भावना
विनती है कि भावना का लगे ##1## ना
सब पढ़ते हैं सुनते हैं पर समझते हैं वो
मात्र मात्रा की गलती पर जो खाते ##2## ना
मेरा ही लहू हो और मेरी ही कलम
किसी और का कुछ लगे ##3## ना
जो पहले से हैं वही कुरेदें हैं मैंने
नए सिरे से मैंने किये ##4## ना
कलम टेढ़ी न हो तो मैं लिख पाता नहीं
सीधी पतवार से तो माझी खेतें ##5## ना
धूप से है जीवन और धूप से है विकास
छालों के डर से मुसाफ़िर मांगे ##6## ना
आज़ादी का मतलब मैं समझ पाया नहीं
लीक से हट कर जब तक रखें ##7## ना
बधाई मिले और ज़माना पूजता रहे
इस तरह की राहुल रखे ##8## ना
सिएटल
3 जून 2008
=================================
ऐसी रचनाओं को मैं सभारंजनी रचना कहता हूँ - जिनमें हर दूसरी लाईन पंचलाईन होती है। जब ऐसी रचनाएँ सुनाई जाती हैं तो कोशिश यह की जाती है कि पहली लाईन दो तीन बारी दोहराई जाए ताकि श्रोताओं की जिज्ञासा बढ़े कि पंचलाईन में काफ़िया क्या होगा?
चूंकि आप सुनने की बजाए इसे पढ़ रहे हैं - मैं चाहता हूँ कि आप भी सभा के आनंद से वंचित न रहे। इसलिए सारे काफ़ियें छुपा दिये हैं। कल तक इंतज़ार करें और मैं सारे काफ़ियें उजागर कर दूंगा।
तब तक आप खुद अपने दिमागी घोड़े दौड़ाए और अंदाज़ा लगाए कि कौन से शब्द #### की जगह ठीक बैठेगें। आप अपने शब्द मुझे भेज सकते हैं, ई-मेल द्वारा (upadhyaya@yahoo.com) - या फिर यहाँ दे दे अपनी टिप्पणी द्वारा। एक बात ध्यान में रखें कि कुल 8 शब्द हैं। कोई भी शब्द दोहराया नहीं गया है।
=======================================
काफ़िया = दो शब्दों का ऐसा रूप-साम्य जिसमें अंतिम मात्राएँ और वर्ण एक ही होते हैं। जैसे-कोड़ा, घोड़ा और तोड़ा,या गोटी चोटी और रोटी का काफिया मिलता है।
=======================================
Posted by Rahul Upadhyaya at 11:40 AM
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Labels: CrowdPleaser, world of poetry
Sunday, June 1, 2008
मैंने पूछा एन-आर-आई से
कि तू घर जाएगा कभी
इस जनम में कभी
एन-आर-आई ने कहा
ग्रीन-कार्ड की क़सम
नहीं, नहीं, नहीं
मैंने पूछा एन-आर-आई से ...
हाथ हैं कि भीख के कटोरें
जो रात दिन पाई-पाई बटोरें
कहने को वैसे हैं इंजीनियर
पर कर्म ऐसे कि जैसे हो चटोरें
मैंने पूछा एन-आर-आई से कि
तेरा पेट भर पाएगा कभी
इस जनम में कभी
एन-आर-आई ने कहा
एक एक डॉलर की क़सम
नहीं, नहीं, नहीं
मैंने पूछा एन-आर-आई से ...
न मैंने तुमको ख़िताब मिलते देखा
न मैंने तुमको किताब पढ़ते देखा
जब भी देखा तो बस यही देखा
स्वार्थ की सीढ़ी पर तुमको चढ़ते देखा
मैंने पूछा एन-आर-आई से कि
तू सुधर पाएगा कभी
इस जनम में कभी
एन-आर-आई ने कहा
बिल गेट्स की क़सम
नहीं, नहीं, नहीं
मैंने पूछा एन-आर-आई से ...
जी हज़ूरी जो तुमने दिखाई
पालतू प्राणी भी दे रहे दुहाई
बिन बाप की बेटी कहूँ तुम्हे मैं
या कहूँ एक अनपढ़ लुगाई
मैंने पूछा एन-आर-आई से कि
तू तलाक़ दे पाएगा कभी
इस जनम में कभी
एन-आर-आई ने कहा
मेरे काम की क़सम
नहीं, नहीं, नहीं
मैंने पूछा एन-आर-आई से ...
सिएटल,
1 जून 2008
(आनंद बक्षी से क्षमायाचना सहित)
====================================
एन-आर-आई = NRI
भीख के कटोरें = begging bowls
डॉलर = Dollar
ख़िताब = award
लुगाई = wife
Posted by Rahul Upadhyaya at 10:07 AM
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Labels: Anand Bakshi, Anatomy of an NRI, nri, parodies, TG