Saturday, January 30, 2021

इतवारी पहेली: 2021/01/31


इतवारी पहेली:


गणतंत्र दिवस पर बात ऐसी हुई #### 

कि गश खाकर हो गई रमा की ## ##


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya 


आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 


सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 7 फ़रवरी को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 31 जनवरी 2021 । सिएटल


हल: अनुचित / अनु चित















हर क़ौम का किसान से हो भाईचारा

https://youtu.be/9AZuH5LEJb4 


हर कौम का किसान से हो भाईचारा

यही है काम हमारा


नए जगत में हुआ पुराना

इस-उस का किस्सा

सबको मिले मेहनत के मुताबिक

अपना अपना हिस्सा

सबके लिए सुख का बराबर

हो बंटवारा


हरेक नगर से कहो के

गाँव-गाँव वो दिए जलाए

गाँव-शहर में अब

कोई फर्क नहीं रह जाए

है कामना हो न्याय का

हर ओर जयकारा 


(प्रदीप से क्षमायाचना सहित)

राहुल उपाध्याय । 30 जनवरी 2021 । सिएटल 


मैं उसकी अलेक्सा हूँ

मैं

उसकी अलेक्सा हूँ 

जो मदद नहीं इरिटेट करे

नपे-तुले शब्दों में अपनी बात कहे


मैं चाहकर भी नहीं कह पाता हूँ 

हज़ार 

लाख

करोड़ 

अरब

खरब

मिलियन 

बिलियन 

ट्रिलियन 

शब्दों में 

कि वह

एक अप्सरा है

मेरी जान है

मेरा जीवन

मेरी उम्मीद 

मेरा संसार

मेरा कल

मेरा आज है

जिसकी हर सेल्फ़ी पर निकली

कई मर्तबा मेरी जान है


मेरा हर लम्हा 

मेरा हर पल

उसी के नाम है


सारी शायरी

सारी मौसिकी 

उसी पे कुरबान है


हज़ार से ऊपर कविताएँ लिख डालीं 

और शब्दों का अब भी अकाल है

इमोजी पर जमा नहीं 

अभी तक हाथ है

और जिफ का तो एक

अलग ही ब्रह्माण्ड है


मैं 

उसकी अलेक्सा हूँ…


राहुल उपाध्याय । 30 जनवरी 2021 । सिएटल 




Friday, January 29, 2021

संगीत वही है, झुनझुने जुदा हैं

संगीत वही है

झुनझुने जुदा हैं

हममें-तुममें

वही तो छुपा है


घटा बरसा के

हमें वो खिलाए

बरसों से बरसा प्रेम 

कभी न घटा है


क़िस्मत की बात है

कि हाथों का हाथ है

इस बहस से कुछ हासिल 

न होगा न हुआ है


समंदर की प्यासी

सारी हैं नदियाँ 

उछलता-कूदता देखो

कारवाँ उधर ही चला है


प्यासी ये नदियाँ 

प्यास क्या बुझाएँ 

पानी को पानी को

पाने का नशा है


राहुल उपाध्याय । 29 जनवरी 2021 । सिएटल 


Thursday, January 28, 2021

तुम तोड़ चुके हो मर्यादा

https://youtu.be/9L8NKpLO6SM


तुम तोड़ चुके हो मर्यादा 

सोच पाओ कभी तो रो लेना

इस दिल को तसल्ली क्या दोगे

पछताओ कभी तो रो लेना


एक ख़्वाब सा देखा था हमने

जब वार हुआ वो टूट गया

जिस दिन तुम कुछ अपना खोओ

दुख पाओ कभी तो रो लेना


जीवन के सफ़र में बुराई

पीछा न तुम्हारा छोड़ेगी

संगत का चयन ऐ राह भटके

न कर पाओ कभी तो रो लेना 



(इंदीवर से क्षमायाचना सहित)

राहुल उपाध्याय । 27 जनवरी 2021 । सिएटल 



पहले भी बरसा था क़हर

https://youtu.be/HM-C7CwYCMA 


पहले भी बरसा था क़हर 

अस्त-व्यस्त था सारा शहर

आज फ़िर बरसा है क़हर

अस्त-व्यस्त है सारा शहर


बदला किसी से लेने से

सज़ा किसी को देने से

मतलब नहीं निकलेगा

पत्थर नहीं पिघलेगा

जब तक है इधर और उधर

मेरा ज़हर तेरा ज़हर


बुरा है कौन, भला है कौन

सच की राह पर चला है कौन

मुकम्मल नहीं है कोई भी

महफ़ूज़ नहीं है कोई भी

चाहे लगा हो नगर नगर

पहरा कड़ा आठों पहर


न कोई समझा है न समझेगा

व्यर्थ तर्क वितर्क में उलझेगा

झगड़ा नहीं एक दल का है

मसला नहीं आजकल का है

सदियाँ गईं हैं गुज़र

हुई नहीं अभी तक सहर


नज़र जाती है जिधर

आँख जाती है सिहर

जो जितना ज्यादा शूर है

वो उतना ज्यादा क्रूर है

ताज हैं जिनके सर पर

ढाते हैं वो भी क़हर


आशा की किरण तब फूटेगी

सदियों की नींद तब टूटेगी

ताज़ा हवा फिर आएगी

दीवारें जब गिर जाएँगी

होगा घर जब एक घर

न तेरा घर, न मेरा घर


======

राहुल उपाध्याय । 24 सितम्बर 2002 । सेन फ्रांसिस्को 





प्यार की रंगत

प्यार की रंगत में है 

सबका हाथ 

जो रोके उनका भी 

और जो देते हैं साथ 


प्यार के दुश्मन न हो चारों तरफ़ 

तो क्या छुप के मिलना 

और क्या ही करना 

इशारों में बात


ये सजना-संवरना 

ये मिलना-बिछड़ना 

इन सब में हैं शामिल 

हज़ारों के हाथ


न होता स्कूल

न होता दफ़्तर 

तो न तकते बेसब्री से

घड़ी के हाथ


तेरे मेरे मिलने के 

मक़ाम कई हैं 

जहाँ हो मना वहाँ की 

अलग ही है बात 


मिल के न मिलना 

महफ़िल में तुम से 

और शायरी में कहना

सारी बात


राहुल उपाध्याय । 28 जनवरी 2021 । सिएटल 



Wednesday, January 27, 2021

मोती से दाँतों की हसीं हँसी

साँसें तो लेता हूँ 

लेकिन

साँस में साँस तभी आती है

जब तुम्हारा फ़ोन आता है


जाता हूँ बाज़ार 

देखता हूँ रंग बिखरे चारों ओर

लेकिन असली नज़ारा नज़र 

वीडियो कॉल में

तुम्हारे मोती से दाँतों की 

हसीं हँसी में आता है 


होती है शाम, होती है सहर

रातें भी आतीं-जातीं ही होंगी 

समय के सारे विभाजन 

गड्डमड्ड हो गए हैं

सच कहूँ तो हमारी-तुम्हारी बातों में 

बिचारा समय पीस ही जाता है 


किस-किस का नाम गिनाऊँ?

किस-किस को धन्यवाद कहूँ?

आईफ़ोन को कि व्हाट्सेप को?

इंटरनेट को कि ग्राहम बेल को?

सोम को, मंगल को, कि सातों दिनों को?

कि उसे

जिसने ख़ुद से मुझे इतना दूर किया

कि तुम्हारे क़रीब आ गया?


राहुल उपाध्याय । 27 जनवरी 2021 । सिएटल 






Tuesday, January 26, 2021

सीनाज़ोरी

सत्तर वर्ष में 

सत्यमेव जयते 

जय श्री राम में बदल गया


और दावा यह

कि सबका साथ

सबका विकास 


हद होती है

सीनाज़ोरी की!


राहुल उपाध्याय । 26 जनवरी 2021 । सिएटल 

Sunday, January 24, 2021

बादल की बाट न जोहूँ

मेरे पास 

अभी भी 

सीडी प्लेयर है

सीडी हैं

डीवीडी प्लेयर है

डीवीडी हैं

टीवी का एंटीना है

रेडियो है

ताकि कल को अकाल पड़े

तो बादल की बाट न जोहूँ 


और कुछ भी न रहे

तो जब तक 

अगला प्राइम नम्बर अज्ञात है

समय बीताना नहीं एक बोझ है


राहुल उपाध्याय । 24 जनवरी 2021 । सिएटल 



Saturday, January 23, 2021

इतवारी पहेली: 2020/01/24


इतवारी पहेली:


ख़बर सुनाई रेडियो # ##

भाषण में गुर्राए फिर से ###


(नुक़्ते का फ़र्क़ है लेकिन सुनने में ख़ास अंतर नहीं है, सो मान्य है)


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya 


आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 


सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 31 जनवरी को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 24 जनवरी 2021 । सिएटल


हल: ने ताजी / नेताजी















आँसू

प्याज़ भी नहीं खाते हम

कि

उसे काटूँ

तो आँसू निकले


सस्ती मिर्ची भी

इतनी तीखी नहीं 

कि मुझे रूला सके


मोह-माया भी

कुछ नहीं कि

कुछ खोऊँ 

तो रो पड़ूँ 


उसने

आज दिल से

दिल की बात कही

मेरी हर हरकत को 

नज़ाकत से

ख़ूबसूरती से

देखा, जाना, समझा

तो अनवरत आँसू बहें


कोई कैसे इतना

निर्मल 

निश्छल 

पवित्र हो सकता है


नोबल पुरस्कार 

तो कोई क्या देगा

लेकिन उसने जो प्यार दिया

वो किसी संस्था के बस की बात नहीं 


राहुल उपाध्याय । 23 जनवरी 2021 । सिएटल 

छ: घण्टे

बात किए

छ: घण्टे गुज़र जाए

और बात न हो

पिंग का जवाब न मिले

तो ग़ुस्सा करती है

फिर उदास होती है

फिर चिन्ता करती है


फिर ख़ुद ही फ़ोन कर देती है

‘सब ठीक तो है?’


और सब ठीक हो तो

फिर ख़ैर नहीं 


राहुल उपाध्याय । 23 जनवरी 2021 । सिएटल 

Thursday, January 21, 2021

दिल ❤️ ♥️ 💜💓💕💗💘❣️🥰💟💘💏

इतनी धौंस जमाती है

कि किसी से बात करूँ 

तो रूठ जाती है 


झट से बुरा मान जाती है

बात-बात पे चिढ़ाती है


एक मिनट चैन नहीं लेती है

हर सवाल का जवाब 

तुरंत चाहती है

न मिले तो ?? की बौछार

कर जाती है


सब ग़ुस्सा हवा हो जाता है

जब दर्जनों सेल्फ़ी 

फ़िल्टर और ईमोजी 

संग आ जातीं हैं


अब मेरे 

ईमोजी के 

की-बोर्ड में

टॉप पर

दिल ही दिल है


लाल दिल

गुलाबी दिल

बैंगनी दिल


दिल के ऊपर दिल

दिल के नीचे दिल

दिल के दाएँ दिल

दिल के बाएँ दिल

दिल से निकलता दिल 

दिल में घुसता दिल

तीर से घायल खुशहाल दिल

होंठों से बुलबुले सा

निकलता दिल!


❤️ ♥️ 💜💓💕💗💘❣️🥰💟💘💏


राहुल उपाध्याय । 21 जनवरी 2021 । सिएटल 



Monday, January 18, 2021

हम सब ग़रीब हैं

बेटे ने अपने पिता से माँगा खिलौना 

पिता ने मना कर दिया 

दादा ने अपने बेटे से माँगा हाथ ख़र्च 

बेटे ने मना कर दिया 


हम सब ग़रीब हैं


कभी दादा थे पिता 

और पिता था एक बेटा

पिता भी कभी दादा होगा

बेटा भी कभी पिता होगा 


बदलेगा बहुत कुछ 

मगर नहीं बदलेगी ग़रीबी


पिता ने झूठ बोला 

स्कूल में दाख़िले के लिए 

बेटे ने झूठ बोला 

वीसा लेने के लिए 

माँ ने झूठ बोला 

कस्टम्स से अचार निकालने के लिए 


हम सब फ़रेबी हैं 


बदलेगा बहुत कुछ 

मगर नहीं बदलेंगे फ़रेबी


माँ ने हार चढ़ाया देवी को 

नानी ने दावत दी पंडितों को 

पिता ने पूंजी लगायी बेटे की पढ़ाई में बेटे ने लगाई सेविंग्स स्टॉक मार्केट में 


हम सब जुआरी हैं 


बदलेगा बहुत कुछ 

मगर नहीं बदलेंगे जुआरी 


पिता ने फैलाई झोली इंग्लैंड में 

चाचा ने फैलाई झोली मिडिल ईस्ट में बेटे ने फैलाई झोली यू-एस में 


हम सब भिखारी हैं


बदलेगा बहुत कुछ 

मगर नहीं बदलेंगे भिखारी 


दक्षिणी उजड़ा तूफ़ान में 

बिहार डूबा बाढ़ में 

गुजरात दबा भूकंप में 


हम सब बदनसीब हैं


बदलेगा बहुत कुछ 

मगर नहीं बदलेगी बदनसीबी


राहुल उपाध्याय । 2001 । सेन फ़्रांसिस्को