कविताएँ
जो लिखी जा चुकी हैं
सुनाई जा चुकी हैं
छप चुकी हैं
पेन्सिल से नहीं लिखी गईं
कि इरेज़र से मिटा दूँ
ब्लॉग नहीं है
कि डीलिट कर दूँ
काग़ज़ नहीं है कि
फाड़ दूँ
मेरी ज़िन्दगी हैं
और सही भी है
कल की अच्छाई
आज पर क्यूँ थोपूँ
आज की बुराई
कल पर क्यूँ मढ़ूँ?
तुम
कल अच्छी थी तो थी
आज नहीं तो नहीं
मैं भी वो कहाँ
जो कल था
कल एक का था
आज दस का हूँ
कल कार में था
आज बस में हूँ
पर किसी के नहीं
बस में हूँ
राहुल उपाध्याय । 18 जून 2021 । सिएटल
1 comments:
एकदम सटीक....
बहुत सुन्दर
वाह!!!
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