मुबारक हो सबको
ये जीवन सलोना
ग़म ज़िन्दगी के
कम हो रहे हैं
दिन हैं ख़ुशी के
ख़ुशी की हैं रातें
ग़म ज़िन्दगी के
कम हो रहे हैं
गुंचे खिले हैं
यहाँ से वहाँ तक
है मौजों की चादर
बिछी आसमाँ तक
जिधर देखूँ मैं अब
करम हो रहे हैं
सफ़ीने फँसे थे
भँवर में हमारे
हाथों से हमने
किए वो किनारे
ख़ुद से अब वाक़िफ़
हम हो रहे हैं
राहुल उपाध्याय । 5 जून 2021 । सिएटल
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