पाए हैं ज़ख़्म जितने बना के चले गए
इन्सान हम को काम का बनाते चले गए
तोड़ा जो दिल तो दर्द हुआ ज़रूर था
इसी दर्द को दवा हम बनाते चले गए
जीवन का सफ़र हुआ और भी हसीं
गुल-ओ-गुलज़ार साँस में बसाते चले गए
होगा वस्ल आगे भी ये तय ज़रूर है
ख़्वाबों में झूठ-साँच सब लाते चले गए
राहुल उपाध्याय । 8 जून 2021 । सिएटल
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