तुमने चाहा
हम सितारों के नीचे एक हों
हम हुए
तुमने चाहा
हम फ़िज़ाओं में घुल जाए
हम घुल गए
तुमने चाहा
हम दिन-दहाड़े चाट खाए
हमने खाई
तुमने चाहा
हम बारीश में भीगें
हम भीगे
अब?
अब क्या?
अब क्या
न भूख है
न प्यास है
न चाह है?
नहीं
सब पूर्ववत है
बस भय भी साथ है
जो पा लिया
उसे खोने का डर है
जब कुछ भी न हो
कुछ भी कर गुजरने को मन करता है
जब सब कुछ हो
डर लगा रहता है
मुझे ख़ुशी है कि
तुम सुखी हो
दुख भी कि
सूखी हो
हवा न दो तो
जवाँ आग
राख होती है
राहुल उपाध्याय । 19 जून 2021 । सिएटल
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