Saturday, June 19, 2021

तुमने चाहा

तुमने चाहा

हम सितारों के नीचे एक हों

हम हुए


तुमने चाहा

हम फ़िज़ाओं में घुल जाए

हम घुल गए


तुमने चाहा

हम दिन-दहाड़े चाट खाए 

हमने खाई


तुमने चाहा

हम बारीश में भीगें 

हम भीगे


अब?

अब क्या?


अब क्या

न भूख है

न प्यास है

न चाह है?


नहीं 

सब पूर्ववत है 

बस भय भी साथ है


जो पा लिया

उसे खोने का डर है 


जब कुछ भी न हो

कुछ भी कर गुजरने को मन करता है 

जब सब कुछ हो

डर लगा रहता है


मुझे ख़ुशी है कि 

तुम सुखी हो

दुख भी कि

सूखी हो


हवा न दो तो 

जवाँ आग 

राख होती है 


राहुल उपाध्याय । 19 जून 2021 । सिएटल 







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