एक दवाई है
सोलह करोड़ रूपये की
जो कि तीन वर्ष की उम्र से पहले
शिशु को दे दी जाए तो
वह एक भयानक बीमारी से बच सकता है
जी सकता है
स्वस्थ वो
फिर भी न रह पाएगा
हज़ारों और काम्पलिकेशन्स हैं
एक लम्बी उम्र जी लेने के बाद
आमतौर पर सब शरीर से छुटकारा
पाने में ही भलाई समझते हैं
तीन साल के बच्चे के जीवन का
निर्णायक कौन?
माँ-बाप, जो दवाई नहीं ख़रीद सकते?
दवाई बनाने वाला, जो इतनी महँगी सम्भावना बेच रहा है?
या ये समाज, जो
ग़रीब का मज़ाक़ उड़ाने के लिए
ऐसे विकल्प स्थापित करता है?
हम सब
जो यह ठीक से नहीं सोच सकते
कि आज कौन सी सब्ज़ी बनाए
अब इसके निर्णायक बन रहे हैं कि
कौन जीए
कौन मरे
कई बार लगता है कि
जितनी कम जानकारी हो
उतना अच्छा
राहुल उपाध्याय । 9 जून 2021 । सिएटल
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