बात अपनी मैं अपनों से कहता नहीं
हर किसी को ग़ज़ल में सुनाता रहा
खेल रिश्तों के बंधन का ऐसा कि बस
जान उनसे मैं अपनी छुड़ाता रहा
खो गया जो वो मेरा कहाँ था कभी
साथ जो भी है वो भी रहेगा नहीं
उम्र के उस पहर में है ये ज़िन्दगी
कि सच सबका मैं खुद को बताता रहा
आज के इस उजाले पे ना हूँ फ़िदा
कल के ग़म का भी कोई भोकाल नहीं
जब से समझा कि जीवन न एक सा सदा
जो भी सीखा उसे मैं भुलाता रहा
चार पद में कहाँ तक बयां मैं करूँ
किसने कितना मुझे कब सहारा दिया
एक वो भी थी, वो भी थी, वो भी तो थी
रोज़ लिख-लिख के मैं गीत मिटाता रहा
राहुल उपाध्याय । 10 नवम्बर 2023 । दिल्ली
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