चलो हम न सही, तुम ही सही
जो कल को ख़ुश हज़ार हुए
मंजर था वो एक सा और
तुम थे खुश, हम बेज़ार हुए
ये कौनसा तिलिस्म है
ये कौनसा दयार है
कि आए ख़िज़ाँ लाख पर
और छाए कहीं बहार है
ये टोलियाँ, ये बोलियाँ
की गई क्यूँ इजाद है
कि रो रहे हैं कुछ यहाँ
हो रहा वहाँ उन्माद है
आदमी को चाहिए कि
आदमी से बात हो
खेल न हो तो भला
किस से किस की बात हो
राहुल उपाध्याय । 20 नवम्बर 2023 । लखनऊ
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