सच-सच बताओ
मुझे तुम प्रिये
कितनी बार
तुम आज रूठी
कितनी बार
मुझे याद किया
फ़ोन उठाया
फ़ोन रखा
कुछ लिखा
कुछ साफ़ किया
दर्पण-दर्पण नज़र है कहती
भला इंसान है क्यों फ़ोन न करती
कब तक यूँ संदिग्ध रहेगी
खुल कर कभी क्यों बात न करती
है अच्छा पर कुछ ज़्यादा ही है
इसका, उसका, सबका ही है
कभी पलट के फ़ोन न करता
अपने ही संसार में रमता
मैं करूँ कोई फ़र्क़ नहीं है
न करूँ कोई दुख नहीं है
देवालय के देवों सा है
सबको देखे, सबको भावे
पर किसी के हाथ न आवे
इसके जैसा निर्मोही नहीं कोई
इसके जैसा मनमोही नहीं कोई
राहुल उपाध्याय । 26 नवम्बर 2023 । सिंगापुर
0 comments:
Post a Comment