वैक्सीन आई है, आई है, वैक्सीन आई है
बड़े दिनों के बाद, एक ग़रीब की याद
जगत को अब क्यों आई है
पहले मेरा हाथ लिया है...
उस पे निशाना दाग दिया है
ओ धन-दौलत पे मरने वाले
इतनी दया क्यूँ मेरे खाते
नौकरी देने की जब थी बारी
भूल गया क्यूँ तू ज़िम्मेदारी
सारे रिश्ते तूने तोड़े
आँख में आँसू तूने छोड़े
कम खाते हैं कम सोते हैं
बहुत ज़्यादा हम रोते हैं
सूनी हो गईं शहर की गलियाँ
कांटे बन गईं बाग की कलियाँ
बंद हुए सावन के झूले
उजड़े आंगन, बुझ गए चूल्हे
अब के बरस जब आई दीवाली
दीप नहीं दिल जले हैं खाली
रंग बिना जब आई होली
रोली लगा के बेटी रो ली
पीपल सूना, पनघट सूना
घर शमशान का बना नमूना
ना फ़सल कटी आई बैसाखी
अब तो क्या रह गया है बाकी
पहले जब भी फूल खिलते थे
मिल-जुल के हम सब खिलते थे
बंद हुआ ये मेल भी अब तो
खतम हुआ ये खेल भी अब तो
डोली में जब बैठी बहना
रस्ता देख रहे थे नैना
मैं तो भाई हूँ मेरा क्या है
इसकी माँ का हाल बुरा है
बजनी थी वहाँ जब शहनाई
छाई थी वहाँ भीषण तन्हाई
तूने पैसा बहुत कमाया
पैसे ने फिर लोभ बढ़ाया
हम पंछी पिंजरे में बैठे
जैसे चाहे तू पैसे ऐंठे
माना उमर बहुत है छोटी
इसकी भी तो क़ीमत होगी
(आनन्द बक्षी से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 16 दिसम्बर 2020 । सिएटल
वीडियो यहाँ देखें/सुनें: https://youtu.be/k6s23D6iUEc