तुम कितने अच्छे हो
सच्चे हो
बिलकुल भोले बच्चे हो
कुछ डेट्स के बाद
तुम्हें अपनी ज़िम्मेदारी का
अहसास ही नहीं है
कब तक बच्चे बने रहोगे?
ब्रेकअप के बाद
बाप रे बाप!
क्या आदमी था
जितना कहो
बस उतना ही
समझता था
राहुल उपाध्याय । 31 अगस्त 2020 । सिएटल
तुम कितने अच्छे हो
सच्चे हो
बिलकुल भोले बच्चे हो
कुछ डेट्स के बाद
तुम्हें अपनी ज़िम्मेदारी का
अहसास ही नहीं है
कब तक बच्चे बने रहोगे?
ब्रेकअप के बाद
बाप रे बाप!
क्या आदमी था
जितना कहो
बस उतना ही
समझता था
राहुल उपाध्याय । 31 अगस्त 2020 । सिएटल
Posted by Rahul Upadhyaya at 11:16 PM
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Labels: misc
मैं गया नहीं गया हूँ
और लॉकडाऊन में जा भी नहीं सकता
और न ही जाने का कोई विचार है
विशेष तौर पर पितरों के तर्पण के लिए
मुझे कोई भी ऐसी प्रक्रिया
पसन्द नहीं
जिससे एक वर्ग विशेष ही
लाभान्वित हो
राहुल उपाध्याय । 30 अगस्त 2020 । सिएटल
Posted by Rahul Upadhyaya at 10:02 AM
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Labels: festivals
तुझे मालूम है, तूझे मालूम है
पग-पग की ख़बरें तूझे मालूम है
कौन आएगा, कौन जाएगा
तुझे मालूम है, तूझे मालूम है
तूझे पग-पग की ख़बरें मालूम है
तू क्यूँ बदलेगा अपनी चाल पुरानी
तू क्यूँ बदलेगा अपनी राह सुहानी
तू क्यूँ बदलेगा अपनी चाल सुहानी
तू क्यूँ बदलेगा अपनी राह पुरानी
तू अनजान नहीं, तू तो मासूम है
तूझे मालूम है, तूझे मालूम है
पग-पग की ख़बरें तूझे मालूम है
कोरोना आएगा, कोरोना जाएगा
तू क्यूँ बदलेगा अपनी चाल पुरानी
तू क्यूँ बदलेगा अपनी राह सुहानी
तू क्यूँ बदलेगा अपनी चाल सुहानी
तू क्यूँ बदलेगा अपनी राह पुरानी
तू अनजान नहीं, तू तो मासूम है
तू अनजान नहीं, तू तो मौसम है
तूझे मालूम है, तूझे मालूम है
पग-पग की ख़बरें तूझे मालूम है
तू तो मौसम है, तू तो मौसम है
राहुल उपाध्याय । 30 अगस्त 2020 । सिएटल
देखो भूला ना करो, मास्क लगाया करो
हम न बोलेंगे कभी, मास्क बिन न आया करो
जो कोई बीमार हुआ, सोचो क्या हाल होगा
इस ख़ता पर तेरी, कितना नुक़सान होगा
खुद भी समझो ज़रा, औरों को समझाया करो
जान पर मेरी बने, ऐसी क्या मर्ज़ी तेरी
क्या मैं दुखी रहूँ, यही चाहत है तेरी
तो फिर बात सुनो, ऐसी ज़िद ना करो
तेरी हँसी है हसीं, माना क़ातिलाना सही
तेरे अधरों पे मुझे, मिली जन्नत की ख़ुशी
लेकिन आज रूको ज़रा, यूँ क़ातिल ना बनो
क्या कहेगा ये जहाँ, बुरा जो इतना फँसा
हर तरफ़ त्राहि-त्राहि, यहाँ से लेकर वहाँ
अब तो तुम मान जाओ, इतने पागल ना बनो
(हसरत जयपुरी से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 1 अगस्त 2020 । सिएटल
Posted by Rahul Upadhyaya at 9:34 AM
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Labels: corona, Hasrat Jaipuri, parodies
मैंने काम और कमाई की तमन्ना की थी
मुझको हाथों की सफ़ाई के सिवा कुछ न मिला
गया मंदिर, गया मस्जिद, कहीं राहत न मिली
किए सजदे, रोए दुखड़े, कहीं चाहत न मिली
रहे हाथ ख़ाली, भलाई की तमन्ना की थी
किसी साधु किसी बाबा का सहारा भी नहीं
रास्ते में कोई मिला नाकारा भी नहीं
मैंने कब तन्हाई की तमन्ना की थी
मेरी राहों से जुदा हो गई राहें सबकी
आज बदली नज़र आती हैं निगाहें सबकी
मिले कसाई, रिहाई की तमन्ना की थी
कुछ भी माँगा तो बदलते हुए फ़रमान मिले
चैन चाहा तो उमड़ते हुए तूफ़ान मिले
मिला बस शोर, शहनाई की तमन्ना की थी
घर में हो क़ैद ज़माने के अंधेरे पाए
घर से बाहर जो निकला तो झमेले पाए
मैंने कब रोज़ लड़ाई की तमन्ना की थी
(साहिर से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 7 अगस्त 2020 । सिएटल
इटली ख़ूबसूरत है
इसलिए नहीं कि
वह ख़ूबसूरत है
बल्कि इसलिए कि
वह इटली है
मोना लिसा सुन्दर है
इसलिए नहीं कि
वह सुन्दर है
बल्कि इसलिए कि
वह मोना लिसा है
जब से हम
पढ़-लिख गए हैं
हमने अपना विवेक
गिरवी रख दिया है
राहुल उपाध्याय । 27 अगस्त 2020 । सिएटल
Posted by Rahul Upadhyaya at 9:50 AM
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Labels: intense
अच्छा हुआ
त्रेतायुग और द्वापरयुग में
मोबाईल नहीं था
वरना
न रावण मरता
न कंस का संहार होता
न महाभारत होता
व्हाट्सएपी दिग्भ्रमित करते रहते
कोई भी क़दम उठाने से पहले सोचते
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय
जो मन खोजा अपना, मुझ-सा बुरा न कोय
राहुल उपाध्याय । 26 अगस्त 2020 । सिएटल
Posted by Rahul Upadhyaya at 5:44 PM
आपका क्या कहना है??
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Labels: intense
दोस्त ढूँढने चला
तो वो डिक्शनरी में मिला
न तेवर बदले
न ज़ेवर बदले
हर मौसम
पेज नम्बर 328 पर मिले
जब चाहूँ
देख लूँ
छू लूँ
सीने से लगा लूँ
उसे
मैं भी वहीं कहीं था
पर पहले वो था
बाद में मैं
पेज नम्बर 549 पर
राहुल उपाध्याय । 25 अगस्त 2020 । सिएटल
Posted by Rahul Upadhyaya at 8:55 PM
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Labels: intense
शब्दों के अर्थ जानने से रचना को समझने में आसानी तो होती है, लेकिन सिर्फ उस रचना को। कुछ दिनों बाद अर्थ खो जाते हैं। किसी दूसरी रचना को पढ़ते वक़्त याद नहीं आते।
उन्हें आत्मसात करने के लिए उन्हें उपयोग में लाना आवश्यक है। मैं उन्हें किसी नयी रचना में शामिल कर लेता हूँ। ज़्यादातर वह नया शब्द ही रचना का बीज होता है।
कभी-कभी नज़्म में एक शब्द है: मुहीब। उस शब्द को लेकर बनी यह रचना:
मोहब्बत मुहीब भी, सलीब भी
पानेवाला खुशनसीब भी
ज़माना हुआ ब्रेकअप हुए
दूर होकर के हैं क़रीब भी
न नज़रें मिलाए, न कहें कुछ
कहने को हैं मेरे हबीब भी
क़ाफ़िया ही कुछ ऐसा है
कि आ गया यहाँ रक़ीब भी
आकर अमेरिका, की शायरी
हुए अमीर, हुए ग़रीब भी
राहुल उपाध्याय । 25 अगस्त 2020 । सिएटल
अब अर्थ सहित:
मोहब्बत मुहीब (डरावनी) भी, सलीब (सूली) भी
पानेवाला खुशनसीब भी
ज़माना हुआ ब्रेकअप हुए
दूर होकर के हैं क़रीब भी
न नज़रें मिलाए, न कहें कुछ
कहने को हैं मेरे हबीब (दोस्त) भी
क़ाफ़िया (तुकांत शब्द) ही कुछ ऐसा है
आ गया यहाँ रक़ीब (प्रेम प्रतिद्वंद्वी) भी
आकर अमेरिका, की शायरी
हुए अमीर, हुए ग़रीब भी
Posted by Rahul Upadhyaya at 12:49 AM
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Labels: Meanings
कविता में शब्द होते हैं। और जैसा कि पिछली पोस्ट में कहा, कई बार हम उनका बिना अर्थ समझे उनसे प्रभावित हो जाते हैं। चाहे वे भारी भरकम हो या सीधे-सादे।
पिछली पोस्ट में साहिर ने भी नज़्म पढ़ी, और अमिताभ ने भी। साहिर ने जब पढ़ी तो अदायगी न के बराबर थी। बिलकुल सपाट रही। हालांकि उन्होंने कुछ पंक्तियाँ दोहराई ज़रूर। लेकिन वो जादू नहीं था जो अमिताभ ने पैदा किया।
मेरे विचार में अदायगी भी श्रोता पर असर छोड़ती है। यदि यश चोपड़ा इस नज़्म को फिल्म में न लेते, यदि अमिताभ की आवाज़ का जादू उस पर नहीं चढ़ता तो शायद यह नज़्म इतना असर नहीं करती और न ही इतनी सुनी जाती। शायद यही हश्र साहिर की अन्य रचनाओं का होता यदि काबिल संगीतकार, एवं गायक उन्हें एक नया रूप नहीं देते।
इन दिनों, कविता तिवारी की एक रचना बहुत प्रसिद्ध हुई। मैंने वीडियो देखा। प्रभावशाली अदायगी। सुनते ही कोई भी मंत्रमुग्ध हो जाए। इतने कठिन, तत्सम शब्द कि सर ही चकरा जाए। मैंने इसे इंटरनेट पर खोजने की कोशिश की। लिखित रूप में कहीं नहीं मिली। सो मैंने स्वयं ही सुन-सुन कर लिख डाली। कठिन शब्दों के अर्थ भी खोजे। कुछ का अंदाजा लगाया।
पहले प्रस्तुत है, बिना अर्थों के। उसके बाद है अर्थ सहित।
मन चंचल है, तन व्यूहल है
झंझावातों का है समूह
अगणित प्रतिकूल परीक्षाएँ
नित जीवन पथ लगता दुरूह
विकृतियाँ, कृतियों के दल का
यदि फलादेश सी लगती हों
संस्तुतियाँ चल विपरीत दिशा
यदि महाक्लेश सी लगती हों
यदि काव्यतत्व के समीकरण
संत्रास दिखाई देते हों
यदि वर्तमान वाले अवगुण
इतिहास दिखाई देते हों
यदि मर्यादाएँ मार्ग छोड़
पथ भ्रष्ट दिखाई देती हों
यदि नराधमों की अनुकृतियाँ
उत्कृष्ट दिखाई देती हों
कर दो विरोध के स्वर बुलंद
सबके हित में परिणाम कहो
निश्चित मत करो समय सीमा
फिर सुबह कहो या शाम कहो
तम हर, अंतर्मन उज्ज्वल कर
जय करुणाकर सुखधाम कहो
यदि मुक्तिमार्ग चुनना चाहो
मेरे संग जय सिया राम कहो
शुभ लक्ष्य लिए आए अतीत
तब तो भविष्य के स्वप्न बुनों
अन्यथा सहज पथ पर चल कर
विक्षिप्त बनों, निज शीश धुनों
जो अंधकार का अनुचर है
अनुयायी है पथ भ्रष्टों का
औचित्य भला कैसे होगा
ऐसे निकृष्ट परिशिष्टों का
तुम याज्ञवल्क के वंशज हो
नचिकेता जैसा तप लेकर
हिरण्यकश्यप से युद्ध करो
प्रहलाद सरीखा जप लेकर
धुन के पक्के पौरुष वाले
ध्रुव जैसे श्रेष्ठ तपस्वी हो
वह कृत्य करो, अनुरक्ति भरो
जिससे यह विश्व यशस्वी हो
हो त्याज्य अशुभ कुल फलादेश
जागृत हो कर शुभ नाम कहो
जो संस्कृति के संरक्षक हो
उनको ही बस गुणधाम कहो
हो हंस वंश अवतंश श्रेष्ठ
होकर सकाम निष्काम कहो
यदि मुक्तिमार्ग चुनना चाहो
मेरे संग जय सिया राम कहो
कर्तार उन्हें कर तार-तार
जो हैं कतार को तोड़ रहे
शुचिता-श्रद्धा-करुणा नकार
अपसंस्कृतियों को जोड़ रहे
उद्देश्य पूर्ण कर दे धरती
कर दे मानवता का विकास
क्षमता को दे जागरण मंत्र
तम हर भर दे सात्विक प्रकाश
तू निखिल विश्व का स्वामी है
अंतर्यामी घट-घट वासी
सज्जनता को कर दे विराट
कर खड़ी खाट जो संत्रासी
उद्भव-स्थिति-संहार-शक्ति
कुल तेरी ही तो छाया है
कहते हैं वेद, पुराण ग्रंथ
तुझमें ही विश्व समाया है
कवियो, भूमिका निभाओ तुम
यति-लय-गति-छंद-ललाम कहो
शुद्धतायुक्त परिमार्जन हो
मत उनको दक्षिण-वाम कहो
श्रद्धायुत नतशीर होकर के
तत्क्षण शत बार परिणाम कहो
यदि मुक्तिमार्ग चुनना चाहो
मेरे संग जय सिया राम कहो
———
अब अर्थ सहित:
मन चंचल है, तन व्यूहल (विहल) है
झंझावातों का है समूह
अगणित प्रतिकूल परीक्षाएँ
नित जीवन पथ लगता दुरूह
विकृतियाँ, कृतियों के दल का
यदि फलादेश (परिणाम) सी लगती हों
संस्तुतियाँ (सुझाव) चल विपरीत दिशा
यदि महाक्लेश सी लगती हों
यदि काव्यतत्व के समीकरण (संतुलन)
संत्रास (आतंक) दिखाई देते हों
यदि वर्तमान वाले अवगुण
इतिहास दिखाई देते हों
यदि मर्यादाएँ मार्ग छोड़
पथ भ्रष्ट दिखाई देती हों
यदि नराधमों की अनुकृतियाँ (नकल)
उत्कृष्ट दिखाई देती हों
कर दो विरोध के स्वर बुलंद
सबके हित में परिणाम कहो
निश्चित मत करो समय सीमा
फिर सुबह कहो या शाम कहो
तम हर, अंतर्मन उज्ज्वल कर
जय करुणाकर सुखधाम कहो
यदि मुक्तिमार्ग चुनना चाहो
मेरे संग जय सिया राम कहो
शुभ लक्ष्य लिए आए अतीत
तब तो भविष्य के स्वप्न बुनों
अन्यथा सहज पथ पर चल कर
विक्षिप्त (पागल) बनों, निज शीश धुनों
जो अंधकार का अनुचर है
अनुयायी (समर्थक) है पथ भ्रष्टों का
औचित्य भला कैसे होगा
ऐसे निकृष्ट परिशिष्टों (बाद में जो जोड़ा गया) का
तुम याज्ञवल्क के वंशज हो
नचिकेता जैसा तप लेकर
हिरण्यकश्यप से युद्ध करो
प्रहलाद सरीखा जप लेकर
धुन के पक्के पौरुष वाले
ध्रुव जैसे श्रेष्ठ तपस्वी हो
वह कृत्य करो, अनुरक्ति (लगाव) भरो
जिससे यह विश्व यशस्वी हो
हो त्याज्य अशुभ कुल फलादेश
जागृत हो कर शुभ नाम कहो
जो संस्कृति के संरक्षक हो
उनको ही बस गुणधाम कहो
हो हंस वंश अवतंश (श्रेष्ठ) श्रेष्ठ
होकर सकाम निष्काम कहो
यदि मुक्तिमार्ग चुनना चाहो
मेरे संग जय सिया राम कहो
कर्तार (करने वाला, ईश्वर) उन्हें कर तार-तार
जो हैं कतार को तोड़ रहे
शुचिता (सफाई, पवित्र)-श्रद्धा-करुणा नकार
अपसंस्कृतियों को जोड़ रहे
उद्देश्य पूर्ण कर दे धरती
कर दे मानवता का विकास
क्षमता को दे जागरण मंत्र
तम हर भर दे सात्विक प्रकाश
तू निखिल विश्व का स्वामी है
अंतर्यामी घट-घट वासी
सज्जनता को कर दे विराट
कर खड़ी खाट जो संत्रासी (आतंकी)
उद्भव-स्थिति-संहार-शक्ति
कुल तेरी ही तो छाया है
कहते हैं वेद, पुराण ग्रंथ
तुझमें ही विश्व समाया है
कवियो, भूमिका निभाओ तुम
यति (कविता में एक जगह )-लय-गति-छंद-ललाम (अलंकार) कहो
शुद्धतायुक्त परिमार्जन (सफाई) हो
मत उनको दक्षिण-वाम (परंपरावादी-प्रगतिशील) कहो
श्रद्धायुत नतशीर होकर के
तत्क्षण शत बार परिणाम कहो
यदि मुक्तिमार्ग चुनना चाहो
मेरे संग जय सिया राम कहो
——
राहुल उपाध्याय । 23 अगस्त 2020 । सिएटल
Posted by Rahul Upadhyaya at 10:58 PM
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Labels: Meanings