जो जहाँ जन्म लेता है
वही उसकी पहचान है
आँख से निकले तो आँसू
माथे पर हो तो पसीना
कहीं ओर से निकले तो कुछ और
चीज़ वही है
नाम अलग
भेदभाव
नैसर्गिक है, प्राकृतिक है
सतत है, सर्वत्र है, अनवरत है
राहुल उपाध्याय । 27 फ़रवरी 2022 । सिएटल
जो जहाँ जन्म लेता है
वही उसकी पहचान है
आँख से निकले तो आँसू
माथे पर हो तो पसीना
कहीं ओर से निकले तो कुछ और
चीज़ वही है
नाम अलग
भेदभाव
नैसर्गिक है, प्राकृतिक है
सतत है, सर्वत्र है, अनवरत है
राहुल उपाध्याय । 27 फ़रवरी 2022 । सिएटल
Posted by Rahul Upadhyaya at 5:57 PM
आपका क्या कहना है??
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इतवारी पहेली:
चुनाव में ऐसे बक रहे हैं #%## ##
कि खुल जाएँगे नहीं रहेंगे #%# ##
इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर।
जैसे कि:
हे हनुमान, राम, जानकी
रक्षा करो मेरी जान की
ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं।
Https://tinyurl.com/RahulPaheliya
आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं।
सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 6 मार्च को - उत्तर बता दूँगा।
राहुल उपाध्याय । 27 फ़रवरी 2022 । सिएटल
इतवारी पहेली:
सागर बड़ा, ## ##
कौन जाने कौन ###
इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर।
जैसे कि:
हे हनुमान, राम, जानकी
रक्षा करो मेरी जान की
ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं।
Https://tinyurl.com/RahulPaheliya
आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं।
सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 27 फ़रवरी को - उत्तर बता दूँगा।
राहुल उपाध्याय । 20 फ़रवरी 2022 । सिएटल
तुम मुझसे शांति की बस इतनी ही अपेक्षा रखना कि
मैं चलते टीवी को बंद कर सकता हूँ
दिखती खबर को अनदेखा कर सकता हूँ
बात करते लोगों से दूर हट सकता हूँ
यह सब मैं कर सकता हूँ
पर करता नहीं
मैं समाज के एक प्रतिष्ठित नागरिक बनने की ओर
प्रयत्नशील हूँ
राहुल उपाध्याय । 26 फ़रवरी 2022 । सिएटल
चले आओ के ऐसे पल ही दवा हैं
हम भी यहाँ हैं, गम भी यहाँ है
कहाँ से लाते तुम्हें ढूँढ खुशियाँ
तुम तो यहाँ हो, हम ही ख़फ़ा हैं
धड़कन ही धड़कन पल-पल जहां में
जो धड़कन न जाने, मंथन कहाँ है
नहीं होती काया सुबह की, सबा की
दिल छूने का करतब होता सदा है
(सबा = प्रातःकाल की हवा)
राहुल की बातें हैं कुछ अटपटी सी
वरना है सिम्पल जो फ़लसफ़ा है
राहुल उपाध्याय । 25 फ़रवरी 2022 । सिएटल
उल्टा सीधा एक समान #25
—————————
मलयालम, नवीन, नवजीवन आदि ऐसे शब्द हैं जो उल्टा सीधा एक समान हैं। बाएँ से दाएँ भी वही हैं जो दाएँ से बाएँ हैं।
यह तो हुए शब्द। ऐसे ही शब्दों के समूह, यानी जुमले भी हो सकते हैं। जैसे कि:
नाहक है कहना।
दिया गया शब्द आगे-पीछे-बीच में कहीं भी आ सकता है।
आज का शब्द है:
केले
राहुल उपाध्याय । 25 फ़रवरी 2022 । सिएटल
उल्टा सीधा एक समान #24
—————————
मलयालम, नवीन, नवजीवन आदि ऐसे शब्द हैं जो उल्टा सीधा एक समान हैं। बाएँ से दाएँ भी वही हैं जो दाएँ से बाएँ हैं।
यह तो हुए शब्द। ऐसे ही शब्दों के समूह, यानी जुमले भी हो सकते हैं। जैसे कि:
नाहक है कहना।
दिया गया शब्द आगे-पीछे-बीच में कहीं भी आ सकता है।
आज का शब्द है:
गिन
राहुल उपाध्याय । 18 फ़रवरी 2022 । सिएटल
जो वादा किया वो करना पड़ेगा
रोके ज़माना चाहे रोके खुदाई
हमको लड़ना पड़ेगा
तरसती निगाहों ने आवाज़ दी है
मुल्क के नेताओं ने आवाज़ दी है
क्या है भला, क्या है बुरा
हम क्यों ये सोचें,
हमको लड़ना पड़ेगा
ये माना हमें जाँ से जाना पड़ेगा
पर ये समझ लो तुमने जब भी पुकारा
हमको लड़ना पड़ेगा
हम अपनी वफ़ा पे ना इलज़ाम लेंगे
हमने जान भी ली, हम जाँ भी देंगे
जब फर्ज ये मान लिया
फिर क्या घबराना
हमको लड़ना पड़ेगा
चमकते हैं जब तक ये चाँद और तारे
न टूटेंगे अब एहद-ओ-पैमां हमारे
एक नेता जब दे सदा
होके दीवाना
हमको लड़ना पड़ेगा
(साहिर से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 24 फ़रवरी 2022 । सिएटल
फेरे लिए थे सात होश-ओ-हवास में
जीना भी साथ-साथ है, मरना भी साथ-साथ
उनसे कहा था आओ तो आओ सोच के
चढ़ना भी साथ-साथ है, उतरना भी साथ-साथ
कहते हैं लोग आजकल दुनिया ख़राब है
लड़ना भी चाहते हैं, बिफरना भी साथ-साथ
आँखों में आँखें डाल के कहते तो जानते
आसां नहीं है मानना, मुकरना भी साथ-साथ
राहुल उपाध्याय । 24 फ़रवरी 2022 । सिएटल
दिन भर ताकता हूँ बाहर
देखता हूँ चहल-पहल
बस का आना, बस का जाना
वॉक को निकलते पड़ोसी
युवा खेलते टेनिस
माताएँ टहलातीं बच्चे
शाम होते ही
गिरा देता हूँ पर्दे
कोई मुझे न देख ले
अंदर न देख ले
बाहर के उजाले में
अंदर का अंधेरा
मुझे महफ़ूज़ रखता है
बाहर के अंधेरे में
अंदर का उजाला
डरता है
राहुल उपाध्याय । 22 फ़रवरी 2022 । सिएटल
http://mere--words.blogspot.com/2022/02/blog-post_82.html?m=1
दिन भर ताकता हूँ बाहर
देखता हूँ चहल-पहल
बस का आना, बस का जाना
वॉक को निकलते पड़ोसी
युवा खेलते टेनिस
माताएँ टहलातीं बच्चे
शाम होते ही
गिरा देता हूँ पर्दे
कोई मुझे न देख ले
अंदर न देख ले
बाहर के उजाले में
अंदर का अंधेरा
मुझे महफ़ूज़ रखता है
बाहर के अंधेरे में
अंदर का उजाला
डरता है
राहुल उपाध्याय । 22 फ़रवरी 2022 । सिएटल
मैं अभी भी एक खुली किताब हूँ
बस भाषा बदल गई है
कुछ पन्ने फट गए हैं
कुछ आगे-पीछे हो गए हैं
कुछ की स्याही उड़ गई है
कुछ अभी कोरे हैं
कभी-कभी कोई आती है
कुछ लिख जाती है
मुझे कुछ समझ नहीं आता
लगता है क्रोशे से कुछ लिखा है
जैसे कोई महीन आर्ट-वर्क हो
सुन्दर
अति सुन्दर
मैं मंत्रमुग्ध हो जाता हूँ
फिर वही
उनके मायने
उलटें-सीधें बताकर
काट-पीटकर
चली जाती है
पन्ने कुछ अभी भी कोरे हैं
मैं चाहता हूँ कि कोई आए
कुछ लिखे
जबकि होना फिर वही है जो पहले हुआ है
लिखने को मैं भी लिख सकता हूँ
लेकिन उसमें वो रोमांच कहाँ?
राहुल उपाध्याय । 22 फ़रवरी 2022 । सिएटल
भारत में पढ़े-लिखे होने का मतलब होता है
ख़ुद खाना न बनाना
ख़ुद कपड़े न धोना
ख़ुद बर्तन न धोना
ख़ुद सफ़ाई न करना
साक्षरता बढ़ जाएगी तो
घर कैसे चलेगा?
अमेरिका में विवाहित भारतीय मर्द होने का मतलब है
ख़ुद खाना न बनाना
ख़ुद कपड़े न धोना
ख़ुद बर्तन न धोना
ख़ुद सफ़ाई न करना
समान अधिकार की बात बढ़ गई तो
घर कैसे चलेगा?
राहुल उपाध्याय । 21 फ़रवरी 2022 । सिएटल
Posted by Rahul Upadhyaya at 12:47 PM
आपका क्या कहना है??
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ये रोग जैसे दुश्मन बन गया बहारों का
करेगा रूख अब छोड़ धरती, सितारों का
आज की रात मेरे दिल की सलामी ले ले
कल तेरी बज़्म से ये रोग चला जाएगा
याद रह जाएगी बस रोग चला जाएगा
तेरी महफ़िल तेरे जलवे हों मुबारक तुझको
तेरी फ़ितरत पे है आज भी संदेह मुझे
तेरा मयखाना सलामत रहे ऐ मानवता
बस पी-पाके चलाता है ये खेद मुझे
टीका भी कोई नहीं के तू बच जाएगा
मैं न होता तो भूल जाता कि रोना क्या है
एक इंसान को इंसान का होना क्या है
तेरी ताक़त तेरी हिम्मत के तूने नापें कदम
अपने हाथों से हाथ का धोना क्या है
अब तुझे आई समझ तो ये चला जाएगा
तू मुझे चाहे तो आज समझ ले कुछ भी
मैं जो जाता हूँ तो क्या कल न कोई आएगा
तू मेरी माने न माने कोई ग़म ही नहीं
आज ना समझा तो क्या कल को समझ जाएगा
जो न बिल आज भरा कल वो भरा जाएगा
राहुल उपाध्याय । 20 फ़रवरी 2022 । सिएटल
Posted by Rahul Upadhyaya at 9:01 PM
आपका क्या कहना है??
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पहले कोविड हुआ
ताकि माँ और मैं साथ रह सकें
अब शायद विश्व युद्ध होगा
ताकि हम सब साथ रह सकें
सुख
कितना बुरा है
बिखराव पैदा करता है
राहुल उपाध्याय । 20 फ़रवरी 2022 । सिएटल
कौन कहता है हर मर्ज़ की दवा होती है
ये जो ज़ीस्त है ये तो यूँही फ़ना होती है
हम भी आते तो आते ही होते रूखसत
एक ख़िदमत न हमसे बजा होती है
तेरी आँखों में कभी देखी थी रज़ा मैंने
आज उन आँखों में एक सज़ा होती है
हम तो ढोते रहें साँसों को जेवर जैसे
अब ये जाना के ये बेवफ़ा होतीं हैं
चलते-चलते कहीं भटक भी गए तो क्या
मंज़िल एक ही तो सबको अता होती है
राहुल उपाध्याय । 19 फ़रवरी 2022 । सिएटल
इतवारी पहेली:
सागर बड़ा, ## ##
कौन जाने कौन ###
इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर।
जैसे कि:
हे हनुमान, राम, जानकी
रक्षा करो मेरी जान की
ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं।
Https://tinyurl.com/RahulPaheliya
आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं।
सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 27 फ़रवरी को - उत्तर बता दूँगा।
राहुल उपाध्याय । 20 फ़रवरी 2022 । सिएटल
इतवारी पहेली:
सबको असीम प्रेम है लता # #
बड़े कहते थे प्यार से लता ##
इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर।
जैसे कि:
हे हनुमान, राम, जानकी
रक्षा करो मेरी जान की
ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं।
Https://tinyurl.com/RahulPaheliya
आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं।
सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 20 फ़रवरी को - उत्तर बता दूँगा।
राहुल उपाध्याय । 13 फ़रवरी 2022 । सिएटल
एक नाव थी
तो दूसरी भी आती थी
कभी-कभी तीसरी-चौथी भी आ जाती थी
अब एक भी नहीं है
तो कोई नहीं आती
इसीलिए
इंसान बाध्य हो जाता है
दो नाव में एक साथ पाँव रखने के लिए
यह स्वाभाविक है
प्रकृति का नियम है
दस्तूर है
कल से
कोई न कोसे
कि दो नाव में पाँव क्यूँ हैं?
राहुल उपाध्याय । 19 फ़रवरी 2022 । सिएटल
चले भी आओ के तुमको
कभी ना हम दगा देंगे
पराया कौन है और कौन
अपना सब भुला देंगे
फड़कती आँख हो कोई
या जाए टूट इक तारा
हमारा कुछ न बिगड़ेगा
हमें सब ही मिला देंगे
करें हम प्यार की बातें
खिलें अब चाँदनी रातें
घटाएँ घिर भी आईं तो
उन्हें काजल बना देंगे
सहारा तुम नहीं तो कौन
किनारा तुम नहीं तो कौन
भटक भी जाए जो कश्ती
किनारे हम लगा देंगे
राहुल उपाध्याय । 17 फ़रवरी 2022 । सिएटल
उल्टा सीधा एक समान #24
—————————
मलयालम, नवीन, नवजीवन आदि ऐसे शब्द हैं जो उल्टा सीधा एक समान हैं। बाएँ से दाएँ भी वही हैं जो दाएँ से बाएँ हैं।
यह तो हुए शब्द। ऐसे ही शब्दों के समूह, यानी जुमले भी हो सकते हैं। जैसे कि:
नाहक है कहना।
दिया गया शब्द आगे-पीछे-बीच में कहीं भी आ सकता है।
आज का शब्द है:
गिन
राहुल उपाध्याय । 18 फ़रवरी 2022 । सिएटल
उल्टा सीधा एक समान #23
—————————
मलयालम, नवीन, नवजीवन आदि ऐसे शब्द हैं जो उल्टा सीधा एक समान हैं। बाएँ से दाएँ भी वही हैं जो दाएँ से बाएँ हैं।
यह तो हुए शब्द। ऐसे ही शब्दों के समूह, यानी जुमले भी हो सकते हैं। जैसे कि:
नाहक है कहना।
दिया गया शब्द आगे-पीछे-बीच में कहीं भी आ सकता है।
आज का शब्द है:
लता
राहुल उपाध्याय । 11 फ़रवरी 2022 । सिएटल